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________________ ४६० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास २-वि० सं० १२१७ के वृत्तविलास ने 'धर्मपरीक्षा' नामक कन्नड भाषा के काव्य की प्रशस्ति में लिखा है 'भरदि जैनेन्द्रभासुरं एनल मोरेदं पाणिनीयक्के टीकुम्" इस में पाणिनीय व्याकरण पर किसी टीका-ग्रन्थ के लिखने का ५ उल्लेख है। इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि प्राचार्य देवनन्दी ने पाणिनीय व्याकरण पर कोई टीका-ग्रन्थ अवश्य रचा था। प्राचार्य पूज्यपाद द्वारा विरचित 'शब्दावतार-न्यास' इस समय अप्राप्य है। परिचय १० चन्द्रय्य कवि ने कन्नड भाषा में पूज्यपाद का चरित लिखा है। उसमें लेखक लिखता है 'देवनन्दी के पिता का नाम 'माधव भट्ट' और माता नाम 'श्रीदेवी' था। ये दोनों वैदिक मतानुयायी थे। इनका जन्म कर्नाटक देश के 'काले' नामक ग्राम में हुआ था। माधव भट्ट ने अपनी स्त्री के कहने १५ से जैन मत स्वीकार किया था। पूज्यपाद को एक उद्यान में मेंढक को सांप के मुंह में फंसा हुआ देखकर वैराग्य उत्पन्न हुआ और वे जैन साधु बन गए।' (जैन सा० और इ०, पृष्ठ ५०, संस्क० २) ___यह चरित्र ऐतिहासिक दृष्टि से अनुपादेय माना जाता है। अतः उपर्युक्त लेख कहां तक सत्य है, यह नहीं कह सकते । फिर भी यह २० सम्भावना ठीक प्रतीत होती है कि देवनन्दी के पिता वैदिक मता नुयायी रहे हों । ऐतिह्य-प्रसिद्ध जैन ग्रन्थकारों में अनेक ग्रन्थकार पहले स्वयं वैदिकधर्मी थे, अथवा उनके पूर्वज वैदिकमतानुयायी थे। देवनन्दी जैनमत के प्रामाणिक प्राचार्य हैं। जैन लेखक इन्हें पूज्यपाद और जिनेन्द्रबुद्धि के नाम से स्मरण करते हैं । गणरत्नमहो२५ दधि के कर्ता वर्धमान ने इन्हें 'दिग्वस्त्र' नाम से स्मरण किया है।' प्राचार्य देवनन्दी का काल अभी तक अनिश्चित है । उनके काल १. 'जैन साहित्य और इतिहास' पृष्ठ ६३, टि० २ (प्र० सं०) । २. शालातुरीयशकटाङ्गजचन्द्रमोमिदिग्वस्त्रभर्तृहरिवामनभोजमुख्याः ।... ३० दिग्वस्त्रो देवनन्दी। पृष्ठ १, २।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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