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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
वाररुचि-वृत्ति का हस्तलेख हमने "मद्रास राजकीय हस्तलेख पुस्तकालय' में विद्यमान वाररुचः वृत्ति की प्रतिलिपि मंगवाई है । यह प्रारम्भ से अष्टाध्यायी ॥४॥३४ सूत्र पर्यन्त है। यदि यह प्रतिलिपि भूल से अन्य को न भेजी गई हो, तो निश्चय ही वह हस्तलेख वाररुच-वृत्ति का नहीं है। इस ग्रन्थ में भट्टोजि दीक्षित विरचित सिद्धान्तकोमुदो को हो सूत्रवृत्ति सूत्रक्रमानुसार तत्तत् सूत्रों पर संगृहीत है।
वररुचि के कतिपय अन्य ग्रन्थ वररुचि के नाम से अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं । उन में कुछ१० एक निम्नलिखित है।
१-तैत्तिरीय प्रातिशाख्य-व्याख्या-इस व्याख्या के अनेक उद्धरण तैत्तरीयप्रातिशाख्य के 'त्रिरत्लभाष्य' और वीरराघवकृत 'शब्दब्रह्मविलास' नामक टोका में मिलते हैं। इसका विरोष वर्णन 'प्राति
शाख्य और उसके टोकाकार' नामक २८ वें अध्याय में किया १५ जायगा। .. २-निरुक्तसमुच्चय-इस ग्रन्य में आवार्य वररुचि ने १०० मन्त्रों की व्याख्या नरुक्तसम्प्रदायानुसार की है । यह निरुक्त-सम्प्रदाय का प्रामाणिस ग्रन्य है। इस का सम्मादन हमने किया है ।
३-सारसमुच्चय--इस ग्रन्थ में वररुचि ने महाभारत से २० आचार-व्यवहार सम्बन्धी अनेक विषयों के श्लोकों का संग्रह किया
है। यह ग्रन्थ बालि द्वीप से प्राप्त हुप्रा है । इस पर बालि भाषा में व्याख्या भी है। इसका सुन्दर संस्करण अभी-अभी श्री डा० रघुवीर ने 'सरस्वती विहार' से प्रकाशित किया हैं ।
४-लिङ्गविशेषविधि -इसका वर्णन 'लिङ्गानुशासन और उसके २५ वृत्तिकार' नामक २५ वें अध्याय में किया जायगा।
५-प्रयोगविधि-यह व्याकरणविषयक लघु ग्रन्थ है। यह नारायणकृत टोका सहित ट्रिवेण्डम से प्रकाशित हो चुका है। . १. इसका परिष्कृत द्वितीय संस्करण २०२२ वि० में पुन: छपवाया है। तृतीय संस्करण सं० २०४० में पुनः छपा है।