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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
५. माथुर (२००० वि० पूर्व से प्राचीन) भाषावृत्तिकार पुरुषोत्तमदेव ने अष्टाध्यायी १।२।५७ की वृत्ति में आचार्य माथुर-प्रोक्त वृत्ति का उल्लेख किया है। महाभाष्य ४।३।
१०१ में भो माथुर नामक प्राचार्य-प्रोक्त किसी वृत्ति का उल्लेख ५ मिलता है।
परिचय माथुर नाम तद्धितप्रत्ययान्त है, तदनुसार इस का अर्थ 'मथुरा में रहनेवाला' अथवा 'मथुरा अभिजनवाला' है । ग्रन्थकार का वास्तविक
नाम अज्ञात है । महाभाष्य में इसका उल्लेख होने से इतना स्पष्ट है १० कि यह प्राचार्य पतञ्जलि से प्राचीन है।
- माथुरी-वृत्ति महाभाष्य में लिखा है-यत्तेन प्रोक्तं न च तेन कृतम् माथुरी वृत्तिः' ।'
इस उद्धरण से यह भी स्पष्ट है कि 'माथुरी-वृत्ति' का रचयिता १५ माथुर' से भिन्न व्यक्ति था । माथुर तो केवल उसका प्रवक्ता है।
. माथुरी वृत्ति का उद्धरण
संस्कृत वाङमय में अभी तक 'माथुरी-वृत्ति' का केवल एक उद्धरण उपलब्ध हुआ है । पुरुषोत्तमदेव भाषावृत्ति १।२।५७ में
लिखता है२० . माथु- तु वृत्तावशिष्यग्रहणमापादमनुवर्तते।'
___ अर्थात् माथुरी वृत्ति में 'तदशिष्यं संज्ञाप्रमाणत्वात् सूत्र के 'प्रशिष्य' पद की अनुवृत्ति प्रथमाध्याय के द्वितीय पाद की समाप्ति तक हैं।
१. डा. कीलहान ने 'माधुरी वृत्तिः' पाठ माना है । उसके चार हस्त२५ लेखों में 'माधुरी वृत्तिः' पाठ भी है। तुलना करो—'अन्येन कृता माथुरेण प्रोक्ता माथुरी वृत्तिः।' काशिका ४।३।१०१॥
२. माथुर+अण् । प्रदीप ४।३। १०१॥ ३. अष्टा० १।२।५३ ॥