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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'स्तोष्याम्यहं पादिकमोदवाहि ततः श्वोभूते शातनीं पातनीं च । नेतारावागच्छन्तं धाणि रावण च ततः पश्चात् स्रंस्यते ध्वंस्यते च ' ॥ ४८२ उक्त वचन श्वोभूति को सम्बोधनरूप से निर्देश होने से प्रतीत होता है कि श्वोभूति इस श्लोक के रचयिता का शिष्य था । प्रदीपकार कंट का भी यही मत है ।' इस श्लोक के रचयिता का नाम अज्ञात है । ५ १० लक्ष्यानुसारी काव्यवचन - हमारे विचार में उक्त श्लोक पाणिनीय सूत्रों को लक्ष्य में रख कर रावणार्जुनीय, भट्टि आदि काव्यों के सदृश लक्ष्य प्रधान काव्य का है । | काल - किन्हीं विद्वानों का मत है कि श्वोभूति पाणिनि का साक्षात् शिष्य है ( हमारा भी यही विचार है ) । यदि यह बात प्रमाणान्तर से पुष्ट हो जाए, तो खोभूति का काल निश्चय ही २६ सौ वर्ष विक्रमपूर्व होगा। महाभाष्य में श्वोभूति का उल्लेख होने से इतना विस्पष्ट है कि श्वोभूति महाभाष्यकार पतञ्जलि से प्राचीन १५ है । ३. व्याडि ( २८०० वि० पूर्व ) श्वोभति के प्रसङ्ग में न्यासकार जिनेन्द्रबुद्धि का जो वचन उद्घृत किया है, उससे विदित होता है कि व्याडि ने भी श्वोभूति के २० समान अष्टाध्यायी की कोई वृत्ति लिखी थी । यदि व्याडि ने अष्टाध्यायी ७ । २ । ११ सूत्र की उक्त व्याख्या संग्रह में न की हो तो निश्चय ही व्याडि ने अष्टाध्यायी की वृति लिखी होगी । व्याडि के विषय में हम 'संग्रहकार व्याडि नामक प्रकरण में (पूर्व २५ पृष्ठ २९९ - ३१५) विस्तार से लिख चुके हैं । ४. कुणि (२००० वि० पूर्व से प्राचीन) भर्तृहरि कैयट और हरदत्त आदि ग्रन्थकार प्राचार्य कुणि १. श्वोभूतिर्नाम शिष्यः । कैयट महाभाष्यप्रदीप १ । १ ५६ ॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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