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अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ४०१ , पामिनि है । अतः प्रतीत होता है कि पाणिनि ने उपर्युक्त नियम का प्रतिपादन सूत्रपाठ की वृत्ति में किया होगा।
५-गणरत्नमहोदधिकार वर्धमान सूरि कौड्याद्यन्तर्गत 'चैतयत" पद पर लिखता है-'पाणिनिस्तु चित संवेदने इत्यस्य चैतयत इत्याह ।
वर्धमान ने यह व्युत्पत्ति निश्चय ही 'क्रौड्यादिभ्यश्च सूत्र की पाणिनीय वृत्ति से उद्धृत की होगी। ___ इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि पाणिनि ने अपने शब्दानुशासन की वृत्ति का प्रवचन अवश्य किया था। ___ पाणिनि के परिचय और काल के विषय में हम (पूर्व पृष्ठ १० १९३-२२१) विस्तार से लिख चुके हैं ।
२. श्वोभूति (२९०० वि० पूर्व) आचार्य श्वोभूति ने अष्टाध्यायी की एक वृत्ति लिखी थी। उसका उल्लेख जिनेन्द्रबुद्धि ने अपने न्यास ग्रन्थ में किया है। काशिका १५ ७२।११ के 'केचिदत्र द्विककारनिर्दशेन गकारप्रश्लेषं वर्णयन्ति' पर वह लिखता है
'केचित् श्वभूतिव्याडिप्रभृतयः 'श्रय कः किति' इत्यत्र विककारनिर्दशेन हेतुना चर्वभूतो गकारः प्रश्लिष्ट इत्येवमाचक्षते ।'
यहाँ श्वोभूति का पाठान्तर 'सुभूति' है सुभूति न्यासकार से अर्वा- २० चीन ग्रन्थकार है। हमारा विचार है कि न्यास में व्याडि के साहचर्य से 'श्वोभूति' पाठ शुद्ध है।
परिचय श्वोभूति प्राचार्य का कुछ भी इतिवृत्त विदित नहीं है। महाभाष्य १।११५६ में एक श्वोभूति का उल्लेख मिलता है । वचन इस २५ प्रकार है--
१. काशिका में 'चैटयत' पाठ है। २. गणरत्नमहोदवि पृष्ठ ३७ । ३. मष्टा० ४.१०॥