SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टाध्यायो के वृत्तिकार ४७७ देते) अन्य वृत्तिकार सिचिवृद्धिः (अ० ७।२।१) सूत्र पर ही वृद्धि संज्ञक आकार ऐकार प्रौकार के उदाहरण देते हैं। यही तत्पर्य धर्मराज यज्वा के शिष्य नारायण ने कैयट की टीका में दर्शाया है । द्र० महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि, भाग २, पृष्ठ २३३ । २. महाभाष्य के उपर्युक्त पाठ के व्याख्यान में शिवरामेन्द्र ५ सरस्वती ने लिखा है क्वचित् संज्ञासूत्राणां वृत्तिरुदाहरणं च नोपलभ्यते, विधिसूत्राणां तूदाहरणमात्रं दृश्यते । द्र०-महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि, भाग २, पृष्ठ २३१, पं० २५, २६ । इसका भाव है-कुछ वृत्तियों में संज्ञा सूत्रों की वृत्ति और उदा- १० हरण नहीं मिलते हैं, विधि सूत्रों के उदाहरण मात्र दिखाई पड़ते हैं । [कुछ वृत्तियों में संज्ञा सूत्रों पर वृत्तिमात्र मिलती है, उदाहरण नहीं मिलते] ३. हरदत्त पदमञ्जरी के प्रारम्भ में लिखता है वृत्त्यन्तरेषु सूत्राण्येव व्याख्यायन्ते..."वृत्त्यन्तरेषु गणपाठ एव १५ नास्ति । भाग १, पृष्ठ ४। ४. पतञ्जलि ने अष्टाध्यायी १२१ के भाष्य में इस सूत्र के चार अर्थों पर विचार किया है। वे हैं क–गाकुटादिभ्यो परो योऽञ्णित् प्रत्ययः इत्संज्ञकङकार इत्यर्थः । द्र०-उद्योत। __ ख-गाकुटादिभ्यो परो योऽणित् प्रत्ययः स द्भिवति डकार इत्संज्ञकस्तस्य भवतीत्यर्थः । ०-प्रदीप। . ग-संज्ञाकरणं तीदम्- गाङकुटादिभ्यो इञ्णित् प्रत्ययो कित्संज्ञो भवति । महाभाष्य। घ-यदवदतिदेशस्तरं यम्-गाङकुटाविभ्योऽञ्णित् द्विद् प्रत्ययो २५ डित्संज्ञो भवति । महाभाष्य। ' इन चार प्रकार के अर्थों का उदभावन पतञ्जलि ने से स्वकल्पना नहीं किया । अपि तु निश्चय ही ये चार प्रकार के अर्थ विभिन्न प्राचीन वृत्तियों में रहे होंगे । इस का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि दश
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy