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________________ अनुपदकार और पदशेषकारं ४७३ ४-'युवालितिसूत्रे युवजरन्निति भाष्ये नोदाहृतम् । अनुपर्दकारेण पुनरेतन्निश्चितमेव ।' 'जरतपलित०' सूत्रवृत्ति की गोयीचन्द्र की व्याख्या। ___इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि 'अनुपद' ग्रन्थ सम्पूर्ण अष्टाध्यायी पर था । यह सम्प्रति अप्राप्त हैं। . व्याकरण के वाङ्मय में जिनेन्द्रबुद्धिविरचित 'न्यास' अपरनाम काशिकाविवरणपञ्जिका के अनन्तर इन्दुमित्र नामक वैयाकरण ने काशिका की 'अनुन्यास' नामक एक व्याख्या लिखी थी । इसके उद्धरण अनेक प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं।' 'अनुन्यास' पद से तुलना करने पर स्पष्ट विदित होता है कि अनुपद का हमारा पूर्व १० लिखित अर्थ युक्त है । इस 'अनुपद' ग्रंन्य के रचयिता का नाम और काल प्रज्ञात है। पदशेषकार पदशेषकार के नाम से व्याकरणविषयक कुछ उद्धरण काशिकावृत्ति, माधवीया धातुवृत्ति, और पुरुषोत्तमदेवविरचित महाभाष्य १५ लघवृत्ति की 'भाष्यव्याख्याप्रपञ्च' नाम्नी टीका में उपलब्ध होते हैं यथा १-'पदशेषकारस्य पुनरिदं दर्शनम्-गम्युपलक्षणार्थ परस्मैपदग्रहणम्, परस्मैपदेषु यो गमिरुपलक्षितस्तस्मात् सकारादेरार्धधातुकस्येड् भवति'। २-'अत एव भाष्यवातिकविरोधात् 'गमेरिट' इत्यत्र परस्मैपदग्रहणं गम्युपलक्षणार्थम्, परस्मैपदेषु यो गमिनिदिष्ट इति पदशेषकार' वर्शनमुपेक्यम्।' ३-'पदशेषकारस्तु शब्दाघ्याहारं शेषमिति वदति' ।। इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि 'पदशेष' नामक कोई ग्रन्थ अष्टा- २५ ध्यायी पर लिखा गया था। 'पदशेष' नाम से यह भी विदित होता है · १-देखो – 'काशिकावृत्ति के व्याख्याकार' नामक १५ वां अध्याय । २. काशिका ७ । २।५८ ॥ ३. पृष्ठ ४३४ की टि० २। . ४. गम धातु, उष्ठ १९२। ५. देखो-इ० हि० क्वार्टी सेप्टेम्बर १९४३, पृष्ठ २७ । तथा पूर्व पृष्ठ ४३३ पं० १४ । १०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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