________________
४७२
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
स्वामी कृत भाष्य की वृत्ति में अनुपदकार को छान्दोग्य षड्विंश ब्राह्मण का व्याख्याता कहा है।'
व्याकरण-वाङमय में अनुपदकार-व्याकरण-वाङमय में भी अनुपदकार का निर्देश अनेक स्थानों पर उपलब्ध होता है । यथा____ मैत्रेयरक्षित विरचित न्यासव्याख्या-तन्त्रप्रदीप और शरणदेव रचित दुर्घटवृत्ति में 'अनुपदकार' के नाम से व्याकरण-विषयक दो उद्धरण उपलब्ध होते हैं । यथा
१-एवं च युवानमाख्यत् प्रचीकलदित्यादिप्रयोगोऽनुपदकारेण नेष्यत इति लक्ष्यते । १० २-प्रेण्वनमिति अनुपदकारेणानुम उदाहरणमुपन्यस्तम्।
सम्भवतः ये उद्धरण यथाक्रम अष्टाध्यायी ७ । ४ । १ तथा ८ । ४ । २ के ग्रन्थ से उद्धृत किये गये है।
'संक्षिप्तसार व्याकरण' के वृत्ति और गोयीचन्द्रकृत व्याख्या में निर्दिष्ट अनुपदकार के चार मत निम्न प्रकार हैं। - १५ १-'शषसे वर्गाद्यात्तद् द्वितीय इत्यनुपदकारः । सन्धिपाद ।
२-'पवमानोऽवर्तमानकाले, यजमानोऽवर्तमानकालेऽकार्ये क्रियाफलेऽपोत्यनुपदकार इति ।' लङ् लुङ वत्'० सूत्रवृत्ति में ।
३-'जयादित्यादीनां तु व्यवस्थया यद्यप्येनच्छित' इति लक्ष्यते प्रत्येनदिति च, तथापि न तदिहेष्टं भाण्यानुपदकारादीनां मतेन विरो२० धात् ।' द्वितीया टौसन्तस्य समासे सूत्रवृत्ति की गोयीचन्द्र की
व्याख्या।
१. अनुपदकारः छान्दोग्यषड्विंशव्याख्याता.........। २. भारतकीमुदी भाग २, पृष्ठ ८६४। ३. दुर्घटवृत्ति पृष्ठ १२६ । ४. मञ्जूषा पत्रिका वर्ष ५, अंक ८, पृष्ठ २५६ ।
५. पाणिनीय तन्त्र में वात्तिक है-चयो द्वितीया शरि पौष्करसादेः। महा० ८।४।४८॥ पौष्करसादि पाणिनि से पूर्ववर्ती है। द्र० पूर्व पृष्ठ ११० । यही मत यहां अनुपदकार के नाम से उद्धृत है।
६. महाभाष्य २।४।३८ में 'एनच्छितक:' पाठ है । भाष्यकार इसे स्वीकार करता है वा नहीं, इस में व्याख्याताओं का मतभेद है।