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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास गया। इससे संस्कृत-भाषा अत्यन्त संकुचित हो गई। संस्कृत-भाषा में किस प्रकार शब्दों का संकोच हुआ, इस का सोपपत्तिक निरूपण हम आगे करेंगे। आधुनिक भाषामत और संस्कृत-भाषा ___ प्राचीन भारतीय भाषाशास्त्र के पारङ्गत महामुनि पतञ्जलि यास्क और स्वायम्भुव मनु के भाषाविषयक मत हम पूर्व दर्शा चुके । आधुनिक पाश्चात्य भाषाशास्त्री इस सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करते । पाश्चात्य भाषाविदों ने विकासवाद के मतानुसार संसार की कुछ भाषानों की तुलना करके नूतन भाषाशास्त्र को कल्पना की है । १० उसके अनुसार उन्होंने संस्कृत को प्राचीन मानते हुये भी उसे संसार की आदिम भाषा नहीं माना। उनका मत हैं-'प्रागैतिहासिक काल में संस्कृत से पूर्व कोई इतर-भाषा (=इण्डोयोरोपियन भाषा) बोली जाती थी। उसी में परिवर्तन होकर संस्कृत-भाषा की उत्पत्ति हुई। पाश्चात्य-शिक्षा दीक्षित भारतीय भी विना स्वयं विचार किये इसी १५ मत को मानते हैं। उत्तरोत्तर काल में संस्कृत-भाषा में भी अनेक परिवर्तन हये । संस्कृत-भाषा को भविष्यत् में परिवर्तनों से बचाने के लिये पाणिनि ने अपने महान् व्याकरण की रचना की। उसके द्वारा भाषा को इतना बांध दिया कि पाणिनि से लेकर आज तक उस में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुअा।' २० अध्यापक बेचरदास जीवराज दोशी ने अपनी 'गुजराती भाषा नी उत्क्रान्ति' नामक व्याख्यान-माला में प्राकृत से वैदिक-भाषा की उत्पत्ति मानी है । उन का लेख इस प्रकार है । ___ 'उक्त प्रकारे जणावेलां अनेक उदाहरणो द्वारा एम सिद्ध करी शकाय एवं छे के व्यापक प्राकृतना प्रवाहनो सीधो संबन्ध वेदोनी २५ जीवती मूल भाषा साथेज छ, न ही के जेनु स्वरूप पाणिनि प्रभृति वैयाकरणोए निश्चित कयुछे एवी लौकिक संस्कृत साथै'।' पाश्चात्य ईसाई मत के अनुसार सारे इतिहास को ईसा पूर्व ६ सहस्र वर्षों में सीमित करने की नियत से विद्वानों ने संस्कृत-वाङमय के प्राचीन-ग्रन्थों का अपने ढंग से अध्ययन करके और उसमें ३० १. पृष्ठ ७४ तथा ७५-७७ तक॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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