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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतितास हमारी दृष्टि में प्रदीपोद्योतन में प्रवर्तकोपाध्याय का नामोल्लेख पूर्वक निर्देश नहीं पाया। हमारे पास प्रवर्तकोपाध्याय का प्रदीपप्रकाश नहीं है । अतः सम्पादक ने नीचे टिप्पणी में जिन ११०, १११, ११५, ११६ पृष्ठों का संकेत किया है, उन से लाभ नहीं उठा सके । इसलिए ५ हमने प्रवर्तकोपाध्याय का उल्लेख अन्नम्भट्ट से पूर्व नहीं किया। २. वैद्यनाथ ने वृद्धिरादैच् (१।१।१) सूत्र के भाष्य के अमेवकागुणाः के व्याख्यान में नागेश भट्ट कृत उद्योत की व्याख्या करते हुए लिखा है अनादिषूदात्तोच्चारणादियत्नविशेषाश्रयणादेव सिद्धे तदानर्थक्या१० पत्तेरतो मूलशैथिल्यात् कथं ज्ञापकतेतिनारायणादयः । तत्खण्डिका तदाशयप्रतिपादिकां प्रवर्तकोक्तिमाह-ए-केति ।' इस लेख से दो बातें सिद्ध होती हैं-एक प्रवर्तकोपाध्याय से विवरणकृन्नारायण पूर्व भावी है और वह उसकी उक्ति का खण्डन करता है । दूसरा 'एकश्रुतिश्च' इत्यादि प्रवर्तकोपाध्याय का वचन १५ नागेश द्वारा उद्धृत है। इस से स्पष्ट है कि प्रवर्तकोपाध्याय विवरण कृत नारायण से उत्तरकालीन और नागेश से पूर्व भावी है । इसी प्रकार वैद्यनाथ पायगुण्ड ने अन्यत्र भी बहुत्र प्रवर्तकोपाध्याय के नामोल्लेख पूर्वक उद्धरण दिये हैं। ____ हमारी दृष्टि में प्रवर्तकोपाध्याय का नागेश पूर्वभावित्व स्पष्ट हैं । अतः हमने इसे नागेश से पूर्व रखा है । विवरण कृत नारायण सं० १६५४ से पूर्वभावी है और नागेश का काल सं० १७३०-१८१० है । अतः सामान्य रूप से प्रवर्तकोपाध्याय का काल सं० १६५० से १७३० के मध्य माना जा सकता है। यदि ‘महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि' के २५ सम्पादक नरसिंहाचार्य का लेख प्रामाणिक माना जाये तो प्रवर्तको पाध्याय का काल १५५० के प्रासपास मानना होगा। उस अवस्था में विवरण कृत नारायण भी अन्नम्भट्ट से पूर्ववर्ती होगा। १. नवाह्निक, निर्णय सागरीय सं०, पृष्ठ १५३, कालम २, टि. १२ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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