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________________ महाभाष्यप्रदीप के व्याख्याकार ४६५ काल नल्ला दीक्षित के पौत्र रामभद्र यज्वा ने उणादिवृत्ति' और परिभाषावत्ति' की व्याख्या में अपने को तजौर के राजा शाह का सम: कालिक कहा है । शाह के राज्य का प्रारम्भ सं०१७४४ वि० से माना जाता है। अतः नारायण शास्त्री का काल लगभग सं० १७००- ५ १७६० वि० मानना उचित होगा। ९. प्रवर्तकोपाध्याय (सं० १६५०-१७३०) प्रवर्तकोध्याय-विरचित 'महाभाष्यप्रदीपप्रकाशिका' के अनेक हस्तलेख अडियार, मैसूर और ट्वेिण्डम के पुस्तकालयों में विद्यमान १० हैं। कहीं-कहीं इस ग्रन्थ का नाम 'महाभाष्यप्रदीपप्रकाश' भी मिलता प्रवर्तकोपाध्याय का कुल, देश, काल आदि अज्ञात है पुनरपि इस के काल पर निम्न लेखों से कुछ प्रकाश पड़ता है १. 'महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि' के सम्पादक एम. एस. नर- १५ सिंहाचार्य ने अन्नम्भट्टीय उद्योतन के प्रसंग में भाग २, के उपोद्घात के पृष्ठ XVII (१७) पर लिखा है प्रथमाह्निके द्वितीयाह्निके च बहुवास्मिन् उद्योतने प्रवर्तकोपाध्याय कृत प्रदीपप्रकाशानुकरणं खण्डनं च दृश्यते । अर्थात् अन्नम्भट्टीय प्रदीपोद्योतन के प्रथम और द्वितीयाह्निक में २० बहुत स्थानों पर प्रवर्तकोपाध्याय कृत प्रदोपप्रकाश का अनुकरण और खण्डन दिखाई पड़ता है। [पिछले पृष्ठ को शेष १-३ टिप्पणियां १. कुप्पुस्वामी ने रामभद्र के श्वसुर का नाम नीलकण्ठ मखीन्द्र लिखा है। द्र०-सं० का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ २१२ । २. इस के पति का नाम रत्नगिरि था । ____३. रामभद्र का शिष्य श्रीनिवास 'स्वरसिद्धान्तमञ्चरी' (पृष्ठ २) का कर्ता है। १. रामभद्र यज्वा विरचित उणादिवत्ति और परिभाषावृत्ति का वर्णन द्वितीय भाग में यथास्थान आगे किया जायेगा । २५
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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