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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
६६ तथा भण्डारकर प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान (ोरियण्टल रिसर्च इंस्टीट्यट) पूना के व्याकरणविभागीय सूचीपत्र, नं ५५, ८४/A २८८६८०/ तथा नं० ५६, ४८७/१९८४-१८८७ ।
परिचय-'महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि' के सम्पादक एम. एस. ५ नरसिंहाचार्य ने भाग ६ में उपोद्घातान्तर्गत 'घ' संकेतित हस्तलेख के विवरण में लिखा है'
'होशियारपुर विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान से प्राप्त नारायणीय विवरण ताड़पत्र पर लिखित है। उसके अन्त में कुछ श्लोक हैं। तदनुसार नारायण केरलदेशीय अग्रहार का निवासी ऋ. ग्वेदी साङ्गवेदाध्यायो ब्राह्मण था। इस के पिता का नाम 'देवशर्मा' और माता का नाम 'आर्या' था। इस ने समग्र व्याकरण का अध्ययन करके बहुबार शिष्यों को व्याकरणशास्त्र पढ़ाया था।
काल-भण्डारकर प्रच्यविद्या प्रतिष्ठान के संग्रह में विद्यमान संख्या ५५, ८४/A १८७६-८० संकेतित हस्तलेख के अन्त में निम्न १५ पाठ मिलता है
इति नारायणीये श्रीमन्महाभाष्ये प्रदीपविवरणे अष्टमाध्यायस्य चतुर्थे पादे प्रथमाह्निकम्, पादश्चाध्यायश्च समाप्तः । शुभं भवतु । सं० १६५४ समये श्रावन वदि ४ चतुर्थी वार बुधवारे । लिखितं माधव ब्राह्मण विद्यार्थी काशीवासी ॥ श्री विश्वनाथ ॥' ___ इस लेख से यह स्पष्ट है कि इस प्रदीपविवरणकार नारायण का काल सं० १६५४ से पूर्ववर्ती है, क्योंकि सं० १६५४ काल माधव विद्यार्थी द्वारा प्रतिलिपि करने का है । नारायण ने ग्रन्थ का लेखन सं० १६५४ से पूर्व किया होगा।
प्रकृत नाराणीय प्रदोपविवरण का नागेश भट्ट ने प्रदीपोद्योत में २५ नाम निर्देश के विना बहुत्र उल्लेख किया है। उन स्थानों पर प्रदी
पोद्योत-छाया के रचयिता पायगुण्ड ने 'विवरणकृन्नारायणादिभिः' के रूप में निर्देश किया है । यथा-नवाह्निक, निर्णयसागर सं० २, पृष्ठ १८१, कालम २, टि०१७ पृष्ठ १८७, कालम २, टि. ११ का अन्त ।
१. अमला परिचय संस्कृत में लिखे गये विवरण के प्रधार पर लिखा गया है।