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महाभाष्यप्रदीप के व्याख्याकार
एक तिरुमल यज्वा कृत महाभाष्य की 'अनुपदा' नाम्नी व्याख्या का हम पूर्व (पृष्ठ ४४३) निर्देश कर चुके हैं । वह भी राघव सोमयाजी कुल है। उसके पिता का नाम मल्लय यज्वा है । यदि दोनों तिरुमल यज्वा और तिरुमलाचार्य एक ही व्यक्ति हों तो अन्नंभट के पितामह का नाम मल्लय यज्वा होगा। यह संभावनामात्र है । एक कुल ५ में समान नामवाले अनेक व्यक्ति हो सकते हैं। उस पर भी दक्षिण देशस्थ परिपाटी के अनुसार पितामह का जो नाम होता है, पौत्र का भी वही नाम प्रायः रखा जाता है।
कुछ प्रसिद्ध ग्रन्थ-अन्नम्भट्ट विरचित बहुत से ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। उन में मीमांसान्यायसुधा की राणकोज्जीवनी टोका, ब्रह्म- १० सूत्र की व्याख्या, अष्टाध्यायी मिताक्षरा वृत्ति, मण्यालोक की सिद्धान्ताजन टीका और तर्कसंग्रह आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । अष्टाध्यायी की वृत्ति का नाम 'पाणिनीय मिताक्षरा' हैं । इस का वर्णन 'अष्टाध्यायी के वृत्तिकार' प्रकरण में किया जायगा। __अन्नम्भट्ट ने 'पाणिनीय मिताक्षरा' की रचना 'प्रदीपोद्योतन' से १५ पूर्व की थी। द्र०-'महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि' भाग १, का सम्पादकीय उपोद्घात, पृष्ठ XVII (१७) । इसका विशेष उल्लेख आगे यथास्थान करेंगे।
६. नारायण (सं० १६५४ से पूर्व) किसी नारायण नामा विद्वान् ने महाभाष्य की 'प्रदीप' व्याख्या पर विवरण नाम से व्याख्या लिखी है। इस विवरण के हस्तलेख कई पुस्तकालयों में विद्यमान हैं । देखो-मद्रास राजकीय हस्तलेख सूचीपत्र, भाग ४, खण्ड १ A, पृष्ठ ४३०२, ग्रन्थाङ्क २६६६; कलकत्ता संस्कृत कालेज पुस्तकालय सूचीपत्र, भाग ८, ग्रन्थाङ्क ७४; लाहौर २५ डी० ए० वी० कालेज लालचन्द पुस्तकालय (सम्प्रति-विश्वेश्वरानन्द शोध-संस्थान, होशियारपुर), संख्या ३८१६, सूचीपत्र भाग १, पृष्ठ त्वमेव सम्यगिति विवरणकृतः' द्र०-प्रदीपव्याख्यानानि, भाग १, पृष्ठ २२८, पं०४-५ । अन्नम्भट्ट द्वारा उद्धृत यह पंक्ति ईश्वरानन्दकृत विवरण में इसी भाग के पृष्ठ २०५, पं० २०-२१ पर मिलती है।