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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास अन्नम्मट्ट (सं० १५५०-१६०० वि०) अन्नम्भट्ट ने प्रदीप की 'प्रदीपोद्योतेन' नाम्नी व्याख्या लिखी है। 'महाभाष्यप्रदीपोद्योतन' के हस्तलेख मद्रास और अडियार के पुस्त कालयों में विद्यमान हैं । इस का प्रथमाध्याय का प्रथम पाद दो भागों ५ में मद्रास से छप चुका है। पाण्डिचेरि से प्रकाश्यमाण 'महाभाष्यव्याख्यानानि' में ६ अध्याय तक छप चुका है। परिचय अन्नम्भट्ट के पिता का नाम अद्वैतविद्याचार्य तिरुमल था। राघव सोमयाजी के वंश में इसका जन्म हुआ था। यह तैलङ्ग देश का रहने १० वाला था। अन्नम्भट्ट ने काशी में जाकर विद्याध्ययन किया था । इसकी सूचना 'काशी गमनमात्रेण नान्नभट्टायते द्विजः' लोकोक्ति से मिलती है। साथ ही अन्नम्भट्ट को विद्वत्ता का भी बोध इस लोकोक्ति से होता है। वंश-अन्नम्भट्ट के 'प्रदीपोद्योतन' के प्रत्येक आह्निक के अन्त में १५ निम्न पाठ उपलब्ध होता है 'इति श्रीमहामहोपाध्यायाद्वैतविद्याचार्यराघवसोमयाजिकुलावतंसश्रीतिरुमलाचार्यस्य सूनोरन्नम्भट्टस्य कृतौ महाभाष्यप्रदीपोद्यने ।' इस से विदित होता है कि अन्नम्भट्ट राघव सोमयाजी कुल का था और पिता का नाम 'तिरुमलाचार्य था । काल-अन्नम्भट्ट का गुरु शेष वीरेश्वर अपरनाम रामेश्वर था । अतः अन्नम्भट्ट का काल विक्रम की १६ शती का उत्तरार्ध होगा। .. गुरु-प्रदीपोद्योतन के प्रारम्भ में एक श्लोक है श्रीशेषवीरेश्वरपण्डितेन्द्रं शेषायितं शेषवचो विशेषे। सर्वेषु तन्त्रेषु च कर्तृतुल्यं वन्दे महाभाष्यगुरुं ममाग्रयम् ।। २५ इस से विदित होता है कि अन्नम्भट्ट ने शेष वीरेश्वर से महाभाष्य का अध्ययन किया था । अन्नम्भट्ट ने वृद्धिरादैच् (१।१११) के प्रदीपोद्योतन में ईश्वरानन्द विरचित विवरण का पाठ उद्धृत किया १. 'समुदायावयवसन्निधौ (क्व द्वियतात्पर्यमिति वक्ष्यमाणविचारासंगतेश्च
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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