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महाभाष्यप्रदीप केव्याख्याकार ४५६ विवरण का उल्लेख किया है और इसके साथ ही बृहविवरण का भी निर्देश किया है । इस से विदित होता है कि रामचन्द्रसरस्वती और ईश्वरान्नदसरस्वती दोनों का काल सं० १५२५-१६०० तक रहा होगा। भट्टोजि दीक्षित के काल पर विशेष विचार 'अष्टाध्यायी के वृत्तिकार' प्रकरण में आगे किया जायेगा।
४. ईश्वरानन्द सरस्वती (सं० १५५०-१६०० वि०)
ईश्वरानन्द ने कैयट ग्रन्य पर 'महाभाष्यप्रदीपविवरण' नाम्नी बृहती टीका लिखी हैं । ग्रन्थकार अपने गुरु का नाम सत्यानन्द सरस्वती लिखता है । अाफेक्ट के मतानुसार सत्यानन्द रामचन्द्र का ही १० नामान्तर है। इसके दो हस्तलेख 'मद्रास राजकीय पुस्तकालय में विद्यमान हैं । देखो-सूचीपत्र भाग ४, खण्ड १C. पृष्ठ ५७२६, ५७८०, ग्रन्थाङ्क ३८६६, ३८६४ । एक हस्तलेख 'जम्मू के रघुनाथ मन्दिर के पुस्तकालय' में है। 'भण्डारकर प्रच्यविद्या प्रतिष्ठान पूना' में भी इसके दो हस्तलेख हैं । देखो-व्याकरणविभागीय हस्तलेख १५ सूचीपत्र नं. ५७ । ३७/A १८७२-७३; नं० ५८ । १८४/A १८८२८३ ।
ईश्वरानन्द सरस्वती के सम्बन्ध में रामचन्द्र सरस्वती के प्रसंग में लिख चुके हैं।
ईश्वरानन्द कृत महाभाष्यप्रदीपविवरण 'महाभाष्यप्रदीपव्या- २० ख्यानानि' के अन्तर्गत पाण्डिचेरि से प्रकाशित हो रहा है । ६-१० भाग छप चुके हैं।
काल-जम्मू के हस्तलेख के अन्त में लेखनकाल १६०३ लिखा है। इससे निश्चित है कि ईश्वरानन्द का काल सं० १६०३ वि० से पर्व है। भट्रोजि दीक्षित ने शब्दकौस्तुभ १।१।५७ में 'कैयटबृह- २५ द्विवरण को उद्धृत किया है । प्रत। इस का काल सं० १५५०१६.. वि० तक मानना युक्त हैं ।