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संस्कृत व्याकरण का इतिहास
१. बृहद्विवरण ईश्वरानन्दकर्तृक है, क्वचित् हस्तलेखों में रामचन्द्र सरस्वती के नाम का लेखन प्रमाद कृत है।
२. लघुविवरण के कर्ता का प्रधान नाम रामचन्द्र है, ईश्वरानन्द उपनाम है । यह अमरेश्वर भारती का शिष्य है। बृहद्विवरण के ५ कर्ता का प्रधान नाम ईश्वरानन्द है और रामचन्द्र सरस्वती उपनाम है। यह सत्यानन्द का शिष्य है।'
हमारा विचार है कि यदि रामचन्द्रसरस्वती का ही सत्यानन्दनामान्तर स्वीकार कर लिया जाए (जैसा कि आफेक्ट का मत है)
और गुरु शिष्य दोनों ने मिल कर दोनों विवरण लिखे, ऐसा मान १. लिया जाये तो नामसांकर्य का दोष नहीं रहता और मत-भेद भी उप
लब्ध हो सकता है । स्कन्द के नाम से प्रसिद्ध निरुक्त टोका स्कन्द
और उस के शिष्य महेश्वर ने मिलकर लिखी थी। अतः उस टीका में भी स्कन्द और महेश्वर के नामों का सांकर्य देखा जाता है । इतना
ही नहीं, निघण्टु व्याख्याकार देवराज यज्वा तो इस टीका के सभी १५ उद्धरण स्कन्द के नाम से ही उद्धृत करता है।
वस्तुतः यह एक ऐसी समस्या है, जिसका यथोचित हल निकालना दुष्कर अवश्य है।
गुरु-पाण्डिचेरि से प्रकाशित रामचन्द्रसरस्वतीविरचित लघुविवरण के प्रथमाध्याय के प्रथम पाद के नवम आह्निक के अन्त में पाठ उपलब्ध होता हैं
इति परमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीमदमरेश्वरभारतीशिष्यरामचन्द्रसरस्वतीश्वरानन्दापरनामधेयविरचितेमहाभाष्यविवरणेप्रथमाध्यायस्य प्रथमे पादे नवममाह्निक समाप्तम् ।
इस लेख से विदित होता है कि रामचन्द्र सरस्वती के गुरु का २५ नाम अमरेश्वर भारती था। तथा ईश्वरानन्दापरनामधेय पाठ के
स्थान में सत्यानन्दापरनामधेय पाठ होना चाहिये । हो सकता है यहां लेखक भ्रान्ति से पाठ भ्रष्ट हुआ हो । रामचन्द्रसरस्वती का अपर नाम सत्यानन्दसरस्वती था, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। . . .. काल-भट्टोजि दीक्षित ने शब्दकौस्तुभ १।१।५७ में कैयटलघु
१. महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि, भाग १, उपोद्घात पृष्ठ XVI(१६) ।