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४५६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास नानि' के अन्तर्गत फ्रेंच भारतीय कलासंकाय पाण्डिचेरि से छप रहा है। इस के ६-१० भाग छप चुके हैं । __ आफेक्ट ने रामचन्द्र का दूसरा नाम सत्यानन्द लिखा है। यदि यह.
ठीक हो तो रामचन्द्र सरस्वती ईश्वरानन्द सरस्वती का गुरु होगा । ५ ईश्रानन्द विरचित 'महाभाष्यप्रदीपविवरण' का एक हस्तलेख जम्मू
के रघुनाथ मन्दिर के पुस्तकालय में विद्यमान है । उस के सूचीपत्र के पृष्ठ ४४ पर इसका लेखन काल सं० १६०३ अङ्कित है। इसी प्रसंग में सूचीपत्र के निर्माता एम० ए० स्टाईन ने टिप्पणी दी है
रामचन्द्रसरस्वतीत्यपि कर्तृर्नाम दृष्टम् । १० लघु और बृहद् विवरणों के लेखकों के नामों में हस्तलेखों में वैमत्यसा उपलब्ध होता है । अतः उस पर विचार किया जाता है
कर्तृ नाम-विचार-फ्रेञ्चभारतीय कला विमर्शालय (INSTITUT FRANCHAIS D' INDOLOGIE) पाण्डचेरी की ओर से कैयट
विरचित. प्रदीप की समस्त उपलब्ध अद्य यावत् अमुद्रित अथवा १५ स्वल्प मुद्रित व्याख्याओं का प्रकाशन सन् १९७३ हो रहा हैं ।
अभी तक (सन् १८५३)इस के ६ भाग छप चुके है । इस के सम्पादक एम० ए० नरसिंहाचार्य ने प्रथमभाग के उपोद्धात में लघविवरण और वृहविवरण के रचयिताओं के नामों के सम्बन्ध में लिखा है
"लघुविवरण की प्राप्त ड-ढ-ण संकेतित तीनों मातृकानों में से २० प्रथम और द्वितीय मातृकाओं के सातों आह्निकों के अन्त में 'इति
श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीरामचन्द्रसरस्वतीश्रीचरणविरचितेभाध्यप्रदीपविवरणे......' लिखा है । तृतीय मातृका में तृतीय आह्निक से सप्तमप्राह्निक पर्यन्त कर्ता के नाम का निर्देश नहीं है । अष्टम पाह्निक के अन्त में इति श्रीरामचन्द्रसरस्वतीश्रीचरणकृते महाभाष्यप्रदीपविवरणे........' लेख मिलता है । नवम आह्निक के अन्त में 'इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीमदमरेश्वरभारतीशिष्यरामचन्द्रसरस्वतीश्वरानन्दापरनामधेयविरचितमहाभाष्यप्रदीप विवरणे ....' निर्देश उपलब्ध होता है।
बृदविवरण की प्राप्त च-छ-ज-झ-अ-ट, संकेतित छ मातृकानों में ३० कृर्तृनाम का निर्देश भिन्न-भिन्न प्रकार से देखा जाता है। छहों मात
काओं में प्रथम आह्निक के अन्त में 'सत्यानन्दशिष्येश्वरानन्दविरचित