SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 490
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहवां अध्याय महाभाष्यप्रदीप के व्याख्याकार महाभाष्य की महामहोपाध्याय कैयट विरचित 'प्रदीप' नाम्नी व्याख्या का वर्णन हम पिछले अध्याय में कर चुके हैं। यह 'महाभाष्यप्रदीप' वैयाकरण वाङमय में विशेष महत्त्व रखता है। इसलिए ५ अनेक विद्वानों ने महाभाष्य की व्याख्या न करके महाभाष्यप्रदीप की व्याख्याएं रची हैं । इन में से रामचन्द्र सरस्वती कृत (लघु) विवरण, ईश्वरानन्द सरस्वती कृत (बहद्) विवरण, अन्नम्भट्ट कृत उद्योतन, नारायण शास्त्री कृत प्रदीपविवरण (अध्याय ३-६ तक), धर्मयज्वा के शिष्य नारायण कृत प्रदीपव्याख्या, तथा शिवरामेन्द्र सरस्वती कृत १० सिद्धान्तरत्नप्रकाश (जो कैयट की व्याख्या नहीं है, सीधे भाष्य की व्याख्या है) सहित'महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि' के नाम से पाण्डिचेरी स्थित 'INSTITUT FRANCHAIS D' INDOLOGIE' संस्थान प्रकाशित कर रहा है । ९-१० भाग छप चुके हैं । प्रदीप की जो व्याख्यायें इस समय उपलब्ध(वा ज्ञात हैं, उनका १५ वर्णन हम इस मध्याय में करेंगे १. चिन्तामणि (१५००-१५५० वि० ?) चिन्तामणि नाम के किसी वैयाकरण ने महाभाष्यप्रदीप की एक संक्षिप्त व्याख्या लिखी है। इसका नाम है-'महाभाष्यकैयटप्रकाश'। इसका एक हस्तलेख बीकानेर के 'अनूप संस्कृत पुस्तकालय' में विद्य- २० मान है । उसका ग्रन्थाङ्क ५७७३ है । यह हस्तलेख आदि और अन्त में खण्डित है। इसका प्रारम्भ 'मुखनासिकावचनोऽनुनासिकः' (१ । १।८) से होता है, और 'प्रचः परस्मिन् (१।११५७) पर समाप्त होता है। परिचय 'महाभाष्यकैयटप्रकाश' के प्रत्येक प्राह्निक के अन्त में निम्न प्रकार पाठ मिलता है
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy