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महाभाष्य के टीकाकार
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२१. सदाशिव (सं० १७२३ वि०) सदाशिव नामक विद्वान् ने 'महाभाष्य-गूढार्थ-दीपिनी' नाम्नी एक व्याख्या लिखी है । इसका एक हस्तलेख 'भण्डारकर प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान पूना' के संग्रह में विद्यमान है। देखो-व्याकरणविषयक सूचोपत्र नं० ५६ । १०४/A १८८३-८४ ।
परिचय-इसके पिता का नाम नीलकण्ठ और गुरु का नाम कमलाकर दीक्षित है । कमलाकर दीक्षित के गुरु का नाम दत्तात्रेय है।
काल-उक्त हस्तलेख के अन्त में निम्न श्लोक मिलता हैअङ्काष्टौ तिथियुक् शाके प्रवङ्गे कातिके सिते । चतुर्दशमिते वस्त्रे लिखितं भाष्यटिप्पणम् ॥ तदनुसार इसका काल शक सं १५८६=वि० सं० १७२४ है ।
२२. राघवेन्द्राचार्य गजेन्द्रगढकर - ये आचार्य सातारा (महाराष्ट्र) नगर के रहने वाले थे । इन्होंने महाभाष्य की व्याख्या लिखी थी । इनका 'त्रिपथगा' एक १५ प्रसिद्ध ग्रन्थ है।
२३. छलारी नरसिंहाचार्य इनका निवास स्थान गोदावरी-तीरस्थ धर्मपुरी था। ये आन्ध्र प्रदेश में उत्पन्न हुए थे । इन्होंने 'शाब्दिक-कण्ठमणि' नामक महा- २० भाष्य की टीका लिखी थी । इनका काल १७वीं शती वि० का उत्तरार्ध था।'
१. इनका निर्देश श्री पं० पद्मनाभ रावजी ने १०१११११९६३ ई. के पत्र में किया है । इस अध्याय में पृष्ठ ४५० तथा अगले अध्याय की टिप्पणियों २५ में मित्रवर श्री पं० पद्मनाभ राव जी के १०-११-१९६३ के जिस पत्र का पर-बार उल्लेख किया है, उसे तृतीय भाग में देखें।