________________
४५०
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
लिखा था । इसका लेखन काल सं० १७९४ - ९८०१ है । इसका हस्तलेख विद्यमान है । यह सूचना हमारे प्रभिन्न- हृदय सुहृद् बन्धु श्री पद्मनाभराव (आत्मकूर-ग्रांध्र) ने १०/११/६३ ई० के पत्र में दी है । इस पत्र में अनेक लेखकों का निर्देश होने से हम इसे तृतीय भाग में छाप रहे हैं वहां देखें ।
५
१८. राजन सिंह
प्राचार्य राजसिंह कृत 'शब्दबृहतो' नाम्नी महाभाष्य-व्याख्या का एक हस्तलेख 'मैसूर के राजकीय पुस्तकालय' में विद्यमान है । १० देखो – सूचीपत्र पृष्ठ ३२२ ।
इसके विषय में हम कुछ नहीं जानते ।
१९. नारायण
नारायणविरचित 'महाभाष्यविवरण' का एक हस्तलेख 'नयपाल १५ दरबार के पुस्तकालय' में सुरक्षित है । देखो - सूचीपत्र भाग २, पृष्ठ २११ ।
किसी नारायण ने महाभाष्यप्रदीप पर एक विवरण लिखा है । इस विवरण का वर्णन हम अगले अध्याय में करेंगे। हमारा विचार कि है यह हस्तलेख 'महाभाष्य-प्रदीप विवरण' का ही है ।
२०
२०. सर्वेश्वर दीक्षित
सर्वेश्वर दीक्षित विरचित 'महाभाष्यस्फूर्ति' नाम्नी व्याख्या एक हस्तलेख 'मैसूर राजकीय पुस्तकालय' के सूचीपत्र पृष्ठ ३१९ ग्रन्थाङ्ग ४३४ पर निर्दिष्ट है । प्रडियार के पुस्तकालय के सूचीपत्र २५ में इसका नाम 'महाभाष्य- प्रवीपस्फूर्ति' लिखा है । प्रतः यह महाभाष्य
की व्याख्या है अथवा प्रदीप की, यह सन्दिग्ध है ।
३०
'मैसूर राजकीय पुस्तकालय' का हस्तलेख सप्तम और अष्टम अध्याय का है । अतः यह ग्रन्थ पूर्ण रचा गया था, यह निर्विवाद है । इसका रचनाकाल अज्ञात है ।