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महाभाष्य के टीकाकार
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वितिसूत्रस्य व्याख्यानम' नाम का एक ग्रन्थ है द्र०-सूचीपत्र पृष्ठ ४१ । सूचीपत्र के सम्पादक स्टाईन ने इस पर टिप्पणी दी है'सम्पूर्णम् । विरचनकाल सं० १७०१। इस पुस्तक का रचयिता शिवरामेन्द्र यति ।
१५. प्रयागवेङ्कटाद्रि प्रयागवेङ्कटाद्रि नाम के पण्डित ने महाभाष्य पर 'विद्वन्मुखभूषण' नाम्नी टिप्पणी लिखी है। इसका एक हस्तलेख 'मद्रास राजकीय पुस्तकालय' के सूचीपत्र भाग २, खण्ड १C, पृष्ठ २३४७, ग्रन्थाङ्क १६५१ पर निदिष्ट है । इसका दूसरा हस्तलेख अडियार के पुस्तकालय में है। उसके सूचीपत्र खण्ड २ पृष्ठ ७४ पर ग्रन्थ का नाम 'विद्व १० न्मुखमण्डन' लिखा है । भूषण और मण्डन पर्यायवाची हैं। .
ग्रन्थकार का देश-काल आदि अज्ञात है।
.. १६. कुमारतातय (१७वीं शती शि०) कुमारतातय ने महाभाष्य की कोई टीका लिखी थी, ऐसा उसके १५ 'पारिजात नाटक" से ध्वनित होता है । यह कुमारतातय वेङ्कटार्य का पुत्र, और कांची का रहने वाला था। ग्रन्थकार 'पारिजात नाटक' के प्रारम्भ में अपना परिचय देते हुए लिखता है।
व्याख्याता फणिराटकणादकपिलश्रीभाष्यकारादि
ग्रन्थानां पुनरीदृशां च करणे ख्यातः कृतीनामसौ । फणिराट् शब्द से पतञ्जलि का ही ग्रहण होता है । अता प्रतीत होता है कि कुमारतातय ने महाभाष्य की व्याख्या अवश्य लिखी थी। इसका अन्यत्र उल्लेख हमारी दृष्टि में नहीं आया। कुमारतातय का काल कुछ विद्वान् विक्रम की १७वीं शती मानते हैं। . .
१७-सत्यप्रिय तीर्थ स्वामी (सं० १७९४-१८०१ वि०) । उत्तरमठाधीश सत्यप्रिय तीर्थ ने महाभाष्य पर एक विवरण
१. मद्रास रा० १० पु० सूचीपत्र भाग २, खण्ड १ C, ग्रन्थाङ्क १६७२, . पृष्ठ २३७६ ।