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________________ ४४६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास - २. विवरण-विवरण नाम के दो व्याख्यान कैयटकृत प्रदीप पर है (इनका वर्णन अगले अध्याय में करेंगे) । इनके भेद के लिए विवरण के सम्पादक ने इनका निर्देश लघुविवरण और विवरण शब्दों से किया है। __सम्पादक ने 'प्रदीपव्याख्यानानि' के प्रथम भाग के उपोद्धात में पृष्ठ XVIII (१८) पर सिद्धान्तरत्नप्रकाश में विवरण के खण्डन में लिखे गये कुछ वचन उद्धृत किये हैं। यथा तृतीया समासे (१।१।३०) इति सूत्रे-एतेन 'सादृश्यमर्थतः प्रयोगार्हत्वेन वेति' विवरणं प्रत्युक्तम् । द्र० भाग १, पृष्ठ १७७ । __ यहां शिवरामेन्द्र सरस्वती ने जिस विवरण के पाठ का खण्डन किया है, वह बृहद विवरण का है। द्र० भाग २, पृष्ठ १७७ । यहां केवल 'च' शब्द का भेद है । वस्तुतः सिद्धान्तरत्नप्रकाश के पाठ में भी 'च' पाठ ही होना चाहिये । 'वा' पद का सम्बन्ध उपपन्न नहीं होता है । उरण रपरः (१११।५१) इति सूत्रे-एतेन पैतृष्वसेय इति । १५ लोपवचने तु सर्वादेशार्थ स्यादिति कैयटः । रपरत्वाभिधानमुखेन सर्वा देशत्वं लोपस्याभिधित्सितम् -रपरत्वं चाविवक्षितम, तेनंतन्न चोदनीयम-यदि सर्वादेशो लोपस्तदा उःस्थाने न भवतीति कथं रपरः स्यादिति' तद्विवरणं च निरस्तम् । द्र० भाग २, पृष्ठ ३३८ । यहां विवरण के जिस पाठ को उद्धृत करके शिवरामेन्द्र सरस्वती २० ने खण्डन किया है, वह भी [बृहद्] विवरण का है। द्र० भाग २ पृष्ठ ३३६ । ३. शब्दकौस्तुभ-शिवरामेन्द्र सरस्वती ने कौस्तुभ वा शब्दकोस्तुभ नाम से भट्टोजि दीक्षित विरचित शब्दकौस्तुभ ग्रन्थ का खण्डन किया है । यथा-सूत्र १।१।१, ४, ५६, ६३, ६५ की सिद्धान्तरत्न२५ प्रकाश व्याख्या। ४. सिद्धान्तकौमुदी-मिदचोऽन्त्यात परः (१३१४७) की व्याख्या में शिवरामेन्द्र सरस्वती ने लिखा है अत एव ह्येतद् भाष्यश्रद्धाजाड्य नेतादृश एव प्रकृतंसूत्रार्थ प्राश्रितः सिद्धान्तकौमुद्याम् ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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