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महाभाष्य के टोकाकार
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वर्णन किया था, उसका आधार काशी के 'सरस्वती भवन' पुस्तकात लय में विद्यमान नवाह्निक मात्र भाग का हस्तलिखित कोश था । अब यह व्याख्या पाण्डिचेरी स्थित 'फ्रांसिस इण्डोलोजि इंस्टीट्यूट' द्वारा महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि के अन्तर्गत षष्ठ अध्याय तक छप चुकी है । इसके सम्पादक एम० एस० नरसिंहाचार्य हैं । । सिद्धान्तरत्नप्रकाश कयट कृत प्रदीप पर व्याख्यारूप नहीं है । फिर भी प्रदीपव्याख्यानानि के अन्तर्गत इसे किस कारण छापा है, इसका निर्देश सम्पादक ने नहीं किया है । कुछ भो कारण रहा हो, परन्तु इस व्याख्या के मुद्रण से वैयाकरणों को बहुत लाभ होगा, ऐसा हमारा विचार है । सिद्धान्तरत्नप्रकाश में पदे पदे कैयट की व्याख्या का खण्डन उपलब्ध होता है । कैयट का प्रधान आधार भर्तृहरि कृत महाभाष्यदीपिका तथा वाक्यपदीय ग्रन्थ है। इस प्रकार कयट के प्रत्याख्यान स्थलों में बहुत्र परम्परातः भर्तृहरि के मत का खण्डन भी इस व्याख्या द्वारा किया है । अनेक स्थलों पर शिवरामेन्द्र सरस्वती का चिन्तन अत्यन्त गम्भीर है, तथा कई स्थानों पर १५ परम्परागत लीक से हट कर भी हैं ।
शिवरामेन्द्र सरस्वती ने अपना कुछ भी परिचय नहीं दिया । इस कारण इसका देश काल आदि अज्ञात है। सिद्धान्तरत्नप्रकाश के प्रतिपाद के अन्त में इस प्रकार निर्देश मिलता है
श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यहरिहरेन्द्रभगवत्पूज्यपादशिष्यश्रोशिव- २० रामेन्द्रसरस्वती योगीन्द्रविरचिते महाभाष्यसिद्धान्तरत्नप्रकाशे ""।
इस से केवल इतना विदित होता है कि शिवरामेन्द्र सरस्वती के गुरु का नाम हरिहरेन्द्र सरस्वती था, तथा शिवरामेन्द्र सरस्वती योगी था ।
शिवरामेन्द्र सरस्वती ने अपनी महाभाष्य की व्याख्या में कैयट २५ अथवा प्रदीप के अतिरिक्त जिन ग्रन्थों का नामोल्लेखन पूर्वक खण्डन किया है, वे निम्न ग्रन्थ हैं
१. विष्णुमिश्रविरचित क्षीरोदाख्य महाभाष्य टिप्पण । इसका वर्णन पूर्व कर चुके हैं (पृष्ठ ४४०-४४१) । द्र० सिद्धान्तरत्नप्रकाश भाग २, पृष्ठ ५७ ।