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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
तिरुमस यज्वा अन्नम्भट्ट का पिता है। दोनों के नाम के साथ 'राघवसोमयाजिकुलावतंस' विशेषण समानरूप से निर्दिष्ट है । अतः इसन काल सं० १५५० वि० के लगभग होगा।
१३. गोपालकृष्ण शास्त्री (सं० १६५०-१७०० वि०) .
अडियार पुस्तकालय के सूचीपत्र भाग २ पृष्ठ ७४ पर गोपालकृष्ण शास्त्री विरचित 'शाब्दिकचिन्तामणि' नामक महाभाष्यटीका का उल्लेख है। इसका एक हस्तलेख 'मद्रास राजकीय पुस्तकालय' में भी
है (देखो-सूचीपत्र भाग १, खण्ड १ A, पृष्ठ २३१, ग्रन्थाङ्क १४३)। १० सूचीपत्र में निर्दिष्ट हस्तलेख के आद्यन्त पाठ से प्रतीत होता है कि
यह भट्टोजि दीक्षित विरचित शब्दकौस्तुभ के सदृश अष्टाध्यायी की स्वतन्त्र व्याख्या है। हमें इसके महाभाष्य की व्याख्या होने में सन्देह
___ गोपालशास्त्री के पिता का नाम वैद्यनाथ, और गुरु का नाम १५ रामभद्र अध्वरी था। रामभद्र का काल विक्रम की १७ वीं शताब्दी
का उत्तरार्ध है, यह हम आगे 'उणादिसूत्रों के वृत्तिकार' नामक २४ वें अध्याय में लिखेंगे।
१४. शिवरामेन्द्र सरस्वती (सं० १६७५-१७५०) . २० शिवरामेन्द्र सरस्वती ने सम्पूर्ण महाभाष्य पर "सिद्धान्तरत्न
प्रकाश' नाम्नी एक सरल सुबोध व्याख्या लिखी है। यह व्याख्या छात्रों एवं महाभाष्य के विशेष अध्येताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी
. हमने इस ग्रन्थ के प्रथम द्वितीय और तृतीय संस्करणों में जो २५ १. देखो—'महाभाष्यप्रदीप के व्याख्याकार' नामक १२ वें अध्याय में अन्नम्भट्टकृत 'प्रदीपोद्योतन' का अन्त्यापाठ ।
२. इति श्रीवत्सकुलतिलकवैद्यनाथसुमतिसूनोः वैयाकरणाचार्यसार्वभौमश्रीरामभद्राध्वरिगुरुचरणश्लाघितकुशलस्य गोपालकृष्णशास्त्रिणः कृतौ शाब्दिकचिन्तामणी प्रथमाध्यायस्य प्रथमे पादेऽष्टममाह्निकम् ।