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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतितास
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इन श्लोकों से विदित होता है कि नीलकण्ठ रामचन्द्र का पौत्र और वरदेश्वर का पुत्र था । वरदेश्वर ने अप्पयदीक्षित के पुत्र से विद्याध्ययन किया था। नीलकण्ठ ने तत्त्वबोधिनीकार ज्ञानेन्द्र सरस्वती से विद्या पढ़ी थी।
काल काशी में किंवदन्ती प्रसिद्ध है कि 'भट्टोजि दीक्षित ने स्वविरचित सिद्धान्तकौमुदी पर व्याख्या लिखने के लिए ज्ञानेन्द्र सरस्वती से अनेक बार प्रार्थना की। उनके अनुमत न होने पर ज्ञानेन्द्रसरस्वती को भिक्षामिष से अपने गह पर बुलाकर ताड़ना की। अन्त में ज्ञानेन्द्र सरस्वती ने टीका लिखना स्वीकार किया'।' इस किंवदन्तो से विदित होता है कि भट्रोजि दीक्षित और ज्ञानेन्द्र सरस्वती लगभग समकालिक थे। पण्डित जगन्नाथ के पिता पेरंभट्ट ने इसी ज्ञानेन्द्र भिक्षु से वेदान्तशास्त्र पढ़ा था। इससे पूर्वलिखित काल की पुष्टि होती है । अतः
नीलकण्ठ का काल विक्रम संवत् १६००-१६७५ वि० के मध्य होना १५ चाहिये।
अन्य व्याकरण नीलकण्ठ ने व्याकरण-विषयक निम्न ग्रन्थ लिखे हैं१-पाणिनीयदीपिका २-परिभाषावृत्ति ३- सिद्धान्तकौमुदी की सुखबोधिनी टीका ४-तत्त्वबोधिनीव्याख्यान गूढार्थदीपिका । इनका वर्णन अगले अध्यायों में यथाप्रकरण किया जाएगा।
११. शेष विष्णु (सं० १६००-१६५० वि०)
शेष विष्णु विरचित 'महाभाष्यप्रकाशिका' का एक हस्तलेख हमने २५ बीकानेर के 'अनप संस्कृत पुस्तकालय' में देखा है। उसका ग्रन्थाङ्ग
५७७४ है । यह हस्तलेख महाभाष्य के प्रारम्भिक दो आह्निक का है । उसके प्रथमाह्निक के अन्त में निम्न पाठ उपलब्ध होता है -
१. यह किंवदन्ती हमने काशी के कई प्रामाणिक पण्डित महानुभावों से सुनी है। यहां पर इसका उल्लेख केवल समकालिकत्व दर्शाने के लिए किया है।