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महाभाष्य के टीकाकार
४४१ क्षीरोद का उल्लेख हमें नहीं मिला। अतः क्षीरोद का निश्चित काल अज्ञात है।
भट्टोजि दीक्षित का काल अधिक से अधिक सं० १५५०-१६५० वि० तक है, यह हम प्रागे सप्रमाण दर्शावेंगे। अतः विष्णुमिश्र के काल के विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि वह सं० १६०० ५ वि० के.समीप रहा होगा।
हमते काशी के सरस्वती भवन के हस्तलेख के पाठ में "विष्णुमित्र' नाम पढ़ा था। पाण्डिचेरी से प्रकाशित 'प्रदीपव्याख्यानानि' में 'विष्णुमिश्र' नाम छपा है। इस संस्करण में हम ने मुद्रित ग्रन्थ के अनुसार ही नाम का संशोधन कर दिया है।
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१०. नीलकण्ठ वाजपेयी (सं० १६००-१६७५ वि०)
नीलकण्ठ वाजपेयी ने महाभाष्य की 'भाष्यतत्त्वविवेक' नाम्नी व्याख्या लिखी है । इसका एक हस्तलेख 'मद्रास राजकीय हस्तलेख पुस्तकालय' के सूचीपत्र भाग २ खण्ड १ A. पृष्ठ १६१२, ग्रन्थाङ्क १५ १२८८ पर निर्दिष्ट है । इस हस्तलेख के अन्त में टीकाकार का नाम नीलकण्ठ यज्वा' लिखा है । यह सूचना श्री सीताराम दांतरे (रीवा) ने १०-३-६३ ई० के पत्र में दी है।
परिचय वंश-नीलकण्ठ वाजपेयी ने सिद्धान्तकौमुदी की 'सुखबोधिनी २० व्याख्या के प्रारम्भ में अपना परिचय इस प्रकार दिया है
रामचन्द्रमहेन्द्राख्यं पितामहमहं भजे ॥ मात्रेयाग्धिकलानिधिः कविबुधालंकारचूडामणिः । तातः श्रीवरदेश्वरो मखिवरो योऽयष्ट देवान् मखैः मध्यष्टाप्पयदीक्षितार्यतनयात् तन्त्राणि काश्यां पुनः । षड्वर्गाणि त्यजेष्टशिवतां प्राप नस्सोऽवतात ॥ श्रीवाजपेयिना नीलकण्ठेन विदुषां मुदे। सिद्धान्तकौमुदीव्याख्या क्रियते सुखबोधिनी। अस्मद्गुरुकृतां व्याख्यां बह्वां तत्त्वबोधिनीम् । विभाव्य तत्रानुक्तं च व्याख्यास्येऽहं यथामति ॥
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