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________________ ४४० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास होता है कि गोपालाचार्य और कृष्णाचार्य का मध्यम सहोदर विठ्ठल था। काल शेषवंश की जो वंशावली हमने ऊपर दी है। उसके अनुसार शेष नारायण शेष कृष्ण के पुत्र वीरेश्वर का समकालिक वा उससे कुछ पूर्ववर्ती है। वीरेश्वर-शिष्य विट्ठलकृत 'प्रक्रियाकौमुदीप्रसाद' का संवत् १५३६ वि० का एक हस्तलेख लन्दन के इण्डिया आफिस के पुस्तकालय में विद्यमान है।' अतः निश्चय ही विट्ठल ने 'प्रक्रिया कौमुदी' की टीका सं० १५३६ वि० से पूर्व रची होगी। इसलिये १० वीरेश्वर का जन्म संवत् १५०० वि० के अनन्तर नहीं हो सकता । लगभग यही काल शेष नारायण का भो समझना चाहिये । पूर्वोद्धृत श्लोकों में स्मत 'फिरिन्दापराज' कौन है, यह अज्ञात है। यदि फिरिन्दापराज का निश्चय हो जावे, तो शेषनारायण का । निश्चित काल ज्ञात हो सकता है। १५ 'सूक्तिरत्नाकर' का सब से प्राचीन सं० १६७५ वि. का हस्तलेख इण्डिया माफिस लन्दन के पुस्तकालय में है। देखो-सूचीपत्र भाग १, खण्ड २, ग्रन्थाङ्क ५६० । बड़ोदा के हस्तलेख-संग्रह में फिरदाप भट्ट के नाम से जो हस्तलेख विद्यमान है, वह अनुमानतः विक्रम की १६ वीं शती का प्रतीत होता है। ९. विष्णुमिश्र (सं० १६०० वि०) 'विष्णमिश्र' नाम के किसो वैयाकरण ने महाभाष्य पर 'क्षीरोद' नामक टिप्पण लिखा था। इस ग्रन्थ का उल्लेख शिवरामेन्द्र सरस्वती विरचित महाभाष्यटोका' और भट्टोजिदीक्षितकृत शब्दको२५ स्तुभ में मिलता है । इन दो ग्रन्यों से अन्यत्र विष्णुमित्र अथवा १. देखो -सूचीपत्र भाग २, पृष्ठ १६७, ग्रन्याङ्क ६१६ । २. तदिदं सर्व क्षीरोदाख्ये लिङ्गार्किकविष्यमित्रविरचिते महाभाष्यटिप्पणे सष्टम् । काशी सरस्वती भवन का हस्तलेख, पत्रा ६ । प्रदीपव्याख्या नानि, भाग २, पृष्ठ ५७ । ३० ३. हयवरट्सूत्रे क्षीरोदकारोऽप्याह । शब्दकौस्तुभ १।१८, पृष्ठ १४४ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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