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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास शेषकार काशिका' और 'माधवीया धातुवृत्ति" में उद्धृत है । इन्दुमित्र काशिका का व्याख्याता है । इसका वर्णन काशिका के व्याख्याता' प्रकरण में होगा। व्याडि के दोनों वचन उसके किस ग्रन्थ से उद्धृत किये गये हैं, यह अज्ञात है। सम्भव है कि 'प्रोंकारश्च' ५ इत्यादि श्लोक उसके कोष ग्रन्थ से उद्धृत किया गया हो, और 'ज्ञानं द्विविधं' इत्यादि उसके सांख्यग्रन्थ से लिया गया हो। - - ७. धनेश्वर (सं० १२५०-१३०० वि०) पण्डित धनेश्वर ने महाभाष्य की चिन्तामणि नाम्नी टीका लिखी १० हैं। इसका 'धनेश' भी नामान्तर है । यह वैयाकरण वोपदेव का गुरु है। धनेश्वरविरचित प्रक्रियारत्नमणि नामक ग्रन्थ अडियार के पुस्तकालय में विद्यमान है। डा० बेल्वेल्कर ने इसका नाम 'प्रक्रियामणि' लिखा है। धनेश्वरविरचित महाभाष्यटीका का उल्लेख श्री पं० गुरुपद हाल१५ दार ने अपने 'व्याकरण दर्शनेर इतिहास' पृष्ठ ४५७ पर किया है । . वोपदेव का काल विक्रम की १३ वीं शताब्दी का उत्तरार्व है। अतः धनेश्वर का काल भी तेरहवीं शती का मध्य होगा। ८. शेष नारायण (सं० १५-१००५५० वि०) शेषवंशावतंस नारायण ने महाभाष्य की 'सूक्तिरत्नाकर' नाम्नी एक प्रौढ़ व्याख्या लिखी है । इस व्याख्या के हस्तलेख अनेक पुस्तकालयों में विद्यमान हैं। बड़ोदा के. 'राजकीय प्राच्यशोध हस्तलेख पुस्तकालय' में इस व्याख्या का एक हस्तलेख फिरिदाय भट्ट कृत महाभाष्य-टीका के नाम से विद्यमान है । इस हस्तलेख को हमने वि० २५ सं० २०१७ के भाद्रमास में देखा था। १. ७।२।५८॥ २. गम्लु धातु, पृष्ठ १६२ । मुद्रित पाठ 'पुरुषकारदर्शन, पाठान्तर-परिशेषकार है, वह अशुद्ध है। यहां 'पदशेषकारदर्शन' पाठ होना चाहिये। ३. सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ १००, पं० ३।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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