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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
महाभाष्य लघुवृत्ति पर एक व्याख्या लिखी थी। उसका कुछ अंश उपलब्ध हुआ है ।'
शंकरकृत व्याख्या का टीकाकार-मणिकण्ठ
शंकरकृत लघुवृत्ति-व्याख्या पर पण्डित मणिकण्ठ ने एक विस्तृत ५ टीका लिखी है । इस टीका का भी कुछ अंश उपलब्ध हुआ है। इस
टीका में 'कारक-विवेक' नामक ग्रन्थ की एक कारिका और भार्याचार्य का भाव का लक्षण उद्धृत है। कारक-विवेक के नाम से उद्धृत वचन वाक्यपदीय और पुरुषोत्तमदेव-विरचित कारक
कारिका के पाठ से मिलता है। भार्याचार्य का नाम अन्यत्र उपलब्ध १० नहीं होता।
___ मणिकण्ठ भट्टाचार्य ने कातन्त्रवृत्ति-पञ्जिका को 'त्रिलोचनचन्द्रिका' नाम्नी टीका लिखी है। हमारे विवार में शंकरकृत भाष्यव्याख्या का टीकाकार और 'त्रिलोचन-चन्द्रिका' का लेखक एक ही मणिकण्ठ नामा व्यक्ति है ।
२. भाष्यव्याख्याप्रपञ्चकार पुरुषोत्तमदेवविरचित भाष्यव्याख्या पर किसी अज्ञातनामा विद्वान् ने एक व्याख्या लिखी है । उसका नाम है-भाष्यव्याख्याप्रपञ्च' । इसका केवल प्रथमाध्याय का प्रथमपाद उपलब्ध हुअा है।
उसके अन्त में निम्न लेख है२० इति फणोन्द्रप्रणीतमहाभाष्यार्थदुरुहतात्पर्यव्याख्यानप्रवृत्तश्री
१. इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टी सेन्टेम्बर १९४३ । .. २. वही इं० हि० क्वा० । - ३. सम्बन्धिभेदात् सत्तैव भिद्यमाना गवादिषु । जातिरित्युच्यते सोऽर्थो
जातिशब्दे पृथक्-पृथक् । इत्यादि कारकविवेके लिखनात् । इ. हि० क्वार्टर्ली .. पृष्ठ २०४ । ४. तस्मात् 'भवतोऽस्मादभिधानप्रत्ययाद्' इति
भावः' इति भार्याचार्य लक्षणं शरणम् । इं• हि• क्वार्टर्ली पृष्ठ २०४ । . ५. वाक्यपदीय काण्ड ३, क्रियासमुद्देश ।
६. जातिरित्युच्यते तस्यां सर्वे शब्दा व्यवस्थिताः । ई० हि० क्वार्टी पृष्ठ २०४ ।
७.द्र. इस ग्रन्थ के प्र० ३. १७ में 'कातन्त्र व्याकरण के व्याख्याता' प्रकरण ।