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महाभाष्य के टीकाकार
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टायन की अमोघा वृत्ति' में उपलब्ध होते हैं । शङ्कर ‘कुण्डली' ग्रन्थ के विषय में लिखता है
'फणिभाष्येऽत्र दुर्गत्वं कन्जटेन प्रकाशितम् ।
श्रुतपालस्य राद्धान्तः कुण्डल्यां कुण्डलायते ॥' शङ्कर पण्डित देवविरचित कुण्डली-व्याख्यान के विषय में ५ लिखता है
'समाख्यातश्च पुरुषोत्तमदेवः परिसमाप्तसकलक्रियाकलापः कुण्डली-व्याख्याने बद्धपरिकरः प्रतिजानीते
कुण्डलीसप्तके येऽर्था दुर्बोध्याः फणिभाषिताः। ते सर्व प्रतिपाद्यन्ते साधुशन्देन भाषया ।
यदि दुष्प्रयोगशाली स्यां फणिभक्ष्यो भवाम्यहम् ॥' २-कारक-कारिका-इस ग्रन्थ में कारक का विवेचन है। यह इस के नाम से ही व्यक्त है।
इनके अतिरिक्त पुरुषोत्तमदेव ने व्याकरण पर अनेक ग्रन्थ रचे थे। उनमें से निम्न ग्रन्थ ज्ञात हैं३-भाषावृत्ति
६-ज्ञापक-समुच्चय ४-दुर्घटवृत्ति
७-उणादिवृत्ति ५-परिभाषावृत्ति
८-कारकचक्र इन ग्रन्थों का वर्णन यथाप्रकरण इस ग्रन्थ में प्रागे किया
जायगा।
अन्य ग्रन्थ-उपर्युक्त व्याकरण-ग्रन्थों के अतिरिक्त त्रिकाण्डशेष-अमरकोष-परिशिष्ट, हारावली-कोष और वर्णदेशना आदि ग्रन्थ पुरुषोत्तमदेव ने रचे थे। त्रिकाण्डशेष और हारावली मुद्रित हो चुके हैं। महाभाष्य-लघुवृत्ति के व्याख्याता
१. शंकर नवद्वीप निवासी किसी शंकर नामक पण्डित ने पुरुषोत्तमदेव की १. ३।१।१८२, १८३ ।