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महाभाष्य के टीकाकार
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जिन, बौद्धदर्शन और महाबोधि के प्रति आदरभाव सूचित किया है।' इन से स्पष्ट है कि पुरुषोत्तमदेव बौद्धमतानुयायी था।
काल भाषावृत्ति के व्याख्याता सृष्टिधराचार्य ने लिखा है कि राजा लक्ष्मणसेन' की आज्ञा से पुरुषोत्तमदेव ने भाषावृत्ति बनाई थी। ५ राजा लक्ष्मणसेन का राज्यकाल अभी तक सांशयिक है । अनेक व्यक्ति लक्ष्मणसेन के राज्यकाल का प्रारम्भ विक्रम संवत् ११७४ के लगभग मानते हैं । पुरुषोत्तमदेव का लगभग यही काल प्रमाणान्तरों से भी ज्ञात होता है। यथा
१-शरणदेव ने शकाब्द १०९५ तदनुसार विक्रम संवत् १२३० १० में दुर्घटवृत्ति की रचना की। दुर्घटवृत्ति में पुरुषोत्तमदेव और उसकी भाषावृत्ति अनेक स्थानों पर उदधृत है । अतः पुरुषोत्तमदेव संवत् १२३० वि० से पूर्वभावी है, यह निश्चित है।
२-वन्द्यघटीय सर्वानन्द ने 'अमरटीकासर्वस्य' शकाब्द १०८१ तदनुसार विक्रम संवत् १२१६ में रचा। सर्वानन्द ने अनेक स्थानों १५ पर पुरुषोत्तमदेव और उसके भाषावृत्ति, त्रिकाण्डशेष, हारावली और वर्णदेशना आदि अनेक ग्रन्थ उद्धृत किये हैं। अतः पुरुषोत्तमदेव ने अपने ग्रन्थ संवत् १२१६ से पूर्व अवश्य रच लिये थे, यह निर्विवाद है ।
१. जिनः पातु वः ।३।३।१७३॥ न दोषप्रति बौद्धदर्शने ।।रामहाबोधि गन्तास्म ।३।३।११७॥ प्रणम्य शास्त्रे सुगताय तायिने ।१।४।३२॥
२० २. श्रीशचन्द्र चक्रवर्ती प्रभृति कुछ लोग लक्ष्मणसेन युवराजत्व काल में भाषावृत्ति की रचना मानते हैं (द्र०–सं० व्या० का उद्भव और विकास, पृष्ठ २८८) यह चिन्त्य है । क्योंकि सृष्टिधराचार्य ने के लक्ष्मणसेन को राजा लिखा है, कि युवराज । इस का कारण यह है कि वे लक्ष्मणसेन का राज्य काल ११६६ ई० (=सं० १२२६ वि०) से मानते हैं । यह मान्यता भी २५ अशुद्ध है।
*३. वैदिकप्रयोगानथिनो लक्ष्मणसेनस्य राज्ञ प्राज्ञया प्रकृते कर्मणि प्रसजन । भाषावृत्त्यर्थविवृत्ति के प्रारम्भ में । ' ४. शाकमहीपतिवत्सरमाने एकनभोनवपञ्चविताने पृष्ठ १ ।
५. इदानीं चंकाशीतिवर्षाधिकसहस्रकपर्यन्तेन शकाब्दकालेन (१०८१) ३० .....। भाग १, पृष्ठ ६१ ।