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________________ ४२८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास धातुप्रदीप और दुर्घटवृत्ति लिखी थी। इनका वर्णन हम आगे तत्तत् प्रकरणों में करेंगे।' ६. पुरुषोत्तमदेव (सं० १२०० वि०) पुरुषोत्तमदेव ने महाभाष्य पर 'प्राणपणा' नाम की एक लघुवृत्ति लिखी थी। इस वृत्ति की व्याख्या का टीकाकार मणिकण्ठ इसका नाम 'प्राणपणित" लिखता है । पुरुषोत्तमदेव बङ्गप्रान्तीय वैयाकरणों में प्रामाणिक व्यक्ति माना जाता है। अनेक ग्रन्थकार पुरुषोत्तमदेव के मत प्रमाणकोटि में १० उपस्थित करते हैं। कई स्थानों में इसे केवल 'देव' नाम से स्मरण किया है परिचय पुरुषोत्तमदेव ने अपने किसी ग्रन्थ में अपना कोई परिचय नहीं दिया । अतः उसका वृत्तान्त अज्ञात है देश-पुरुषोत्तमदेव ने अष्टाध्यायी की भाषावृत्ति में प्रत्याहारों का परिगणन करते हुए लिखा है-अश् हश् वश् झर जश् पुनर्बश् ।' इस वाक्य में 'पुनः' पद के प्रयोग से ज्ञात होता है कि पुरुषोत्तमदेव बंगदेश निवासी था। क्योंकि बंगप्रान्त में 'ब' और 'व' का उच्चारण समान अर्थात् पवर्गीय 'ब' होता है । अत एव पुरुषोत्तमदेव ने २० उच्चारणजन्य पुनरुक्तदोष परिहारार्थ 'पुनः' शब्द का प्रयोग किया है। मत-देव ने महाभाष्य और अष्टाध्यायी की व्याख्यानों के मंगव श्लोक में 'बुद्ध' को नमस्कार किया है। भाषावृत्ति में अन्यत्र श्री १५ १. तन्त्रप्रदीप—'काशिका के व्याख्याता' नामक १५ वें अध्याय में न्यास के व्याख्यात प्रकरण में । घातुप्रदीप--'धातुपाठ के प्रवक्ता और २५ व्याख्याता' नामक २१ वें अध्याय में । दुर्घटवृत्ति--'अष्टाध्यायी के वृत्तिकार' नामक १४ वें अध्याय में। २. देखो-पागे पृष्ठ ४३०, टि० २। ३. भाषावृत्ति पृष्ठ १। ४. महाभाष्य० --नमो बुधाय बुद्धाय । भाषावृत्ति-नमो बुद्धाय.....।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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