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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
कलश ने महाभाष्य की टीका नहीं रची थी । उक्त श्लोक में केवल उसके महाभाष्य के प्रवचन में अत्यन्त पट होने का उल्लेख किया है, फिर भी ऐतिहासिकों को इस विषय पर अनुसंधान करना चाहिए, ऐसा हमारा विचार है।
परिचय वंश-ज्येष्ठकलश कौशिक गोत्र का ब्राह्मण था। इसके पिता का नाम राजकलश और पितामह का नाम मुक्तिकलश था। ये सब श्रोत्रिय और अग्निहोत्री थे। ज्येष्ठकलश की पत्नी का नाम नागदेवी
था । ज्येष्ठकलश के बिल्हण इष्टराम और आनन्द नामक तीन पुत्र १. थे। ये सब विद्वान् और कवि थे। बिल्हण ने 'विक्रमाङ्कदेवचरित' नामक महाकाव्य की रचना की है।
देश-ज्येष्ठकलश कश्मीर में 'प्रवरपुर' के पास 'कोनमुख' ग्राम का निवासी था। वह मूलतः मध्यदेशीय ब्राह्मण था।
काल
१५ ज्येष्ठकलश का पुत्र बिल्हण कश्मीर छोड़ कर दक्षिण देश में
चला गया । वह कल्याणी के चालुक्यवंशी षष्ठ विक्रमादित्य त्रिभुवनमल्ल का सभा-पण्डित था। उसने बिल्हण को 'विद्यापति' की उपाधि से विभूषित किया था। इस विक्रमादित्य का काल वि० सं० ११३३
११८४ तक माना जाता है । अतः बिल्हण के पिता ज्येष्ठकलश का २० काल वि० सं० १०८५-११३५ तक रहा होगा।
बिल्हण ने 'विक्रमाङ्कदेवचरित' के अठारहवें सर्ग में अपने वंश का विस्तार से परिचय दिया है।
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५. मैत्रय रक्षित (सं० ११४५-११७५ वि०) मैत्रेय रक्षित बौद्ध वैयाकरणों में विशिष्ट स्थान रखता है। सीरदेव ने परिभाषा-वृत्ति में मैत्रेय रक्षित को बहुशः उद्धृत किया है। उनमें कुछ उद्धरण ऐसे हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि मैत्रेय रक्षित ने महाभाष्य की कोई टीका रची थी। सीरदेव के वे उद्धरण नीचे लिखे जाते हैं