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________________ महाभाष्य के टीकाकार ४२५ महाभाष्य-प्रदीप के टीकाकार | महाभाष्यप्रदोप के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होने के कारण अनेक वैयाकरणों ने इस पर टीकाएं लिखो हैं। उनमें से निम्न टीकाकारों की टीकाएं उपलब्ध या ज्ञात हैं१, चिन्तामणि ८. नारायण शास्त्री २. मल्लय यज्वा ६. नागेशभद्र ३. रामचन्द्र सरस्वती १०. प्रवर्तकोपाध्याय ४. ईश्वरानन्द सरस्वती ११. प्रादेन ५. अन्न भट्ट १२. सर्वेश्वर सोमयाजी ६. नारायण १३. हरिराम ७. रामसेवक १४. अज्ञातकर्तृक इन टीकाकारों का वर्णन हम 'महाभाष्य-प्रदीप के व्याख्याकार' नामक बारहवें अध्याय में करेंगे। ४. ज्येष्ठकलश (सं० १०८५-११३५ वि०) १५ ज्येष्ठकलश ने महाभाष्य की एक टीका लिखी थी, ऐसी ऐतिहासिकों में प्रसिद्धि है। परन्तु गवर्नमेण्ट संस्कृत कालेज काशी से प्रकाशित 'विक्रमाङ्कदेवचरित' के सम्पादक पं० मुरारीलाल शास्त्री नागर का मत है कि ज्येष्ठकलश ने महाभाष्य पर कोई टीका नहों रची। हमारा भी यही विचार है । बिल्हण का लेख इस प्रकार है- २० महाभाष्यव्याख्यामखिलजनवन्द्यां विदधतः, सदा यस्यच्छात्रैस्तिलकितमभूत् प्राङ्गणमपि ।' यहां 'विदधतः' वर्तमान काल का निर्देश और छात्रों से शोभित प्राङ्गण (-बरामदा) का वर्णन होने से प्रतीत होता है कि ज्येष्ठ १. कृष्णमाचार्य कृत 'हिस्ट्री आफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर' पृष्ठ २५ १५५ । २. विक्रमाङ्कदेवचरित की भूमिका पृष्ठ ११ । ३. विकमाङ्कदेवचरित सर्ग १८, श्लोक ७६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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