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महाभन्ष्य के टीकाकार
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तच्छब्दान्तरमेव अव्युत्पन्नमेव प्रबन्धस्य वाचकम् ।
पारम्पर्यमित्यपि तस्मादेव स्वार्थे व्याज भवति । कयं पारोवविद् इति ? असाधुरेवायम्, खप्रत्ययसन्नियोगेन परोवरेति निपातनात् । पदमञ्जरी ५।२।१०॥
तुलना करो महाभाष्यप्रदीप-अन्ये तु परम्पराशब्दमव्युत्पन्न- ५ माचक्षते । तस्मात् स्वार्थे ष्यिनि 'पारम्पर्यम्' इति भवति । 'पारोवर्यविद्' इत्यस्यासाधुत्वमाहुः, प्रत्ययसन्नियोगेनैव निपातनस्य युक्तत्वं मन्यमानाः ।।२।१०॥
इस पाठ की उपस्थिति में पुनः यह सन्देह उत्पन्न हो जाता है कि कैयट और हरदत्त दोनों में कौन प्राचीन है।' इस संदेह की १० निवृत्ति पुरुषोत्तमदेव विरचित भाष्यव्याख्या पर किसी अज्ञातनामा 'प्रपञ्च' नाम्नी टीका के लेखक के निम्न वचन से हो जाती हैं
अतः एव प्राचीनवृत्तिटीकायां कज्जट मतानुसारिणा हरिमिश्रेणापिभाष्यवचनमनूद्य..."।' .
इससे स्पष्ट है कि कैयट हरदत्त से प्राचीन है । हो सकता है कि १५ कयट ने उक्त उद्धरण किसी अन्य प्राचीन ग्रन्थ से उद्धृत किया हो, और हरदत्त ने उसी मत को प्रमाण मान कर ‘पदमञ्जरो' में स्वीकार किया हो।
यद्यपि पूर्वनिर्दिष्ट ग्रन्थकारों में मैत्रेयरक्षित, धर्मकीर्ति और हरदत्त का काल भी अनिश्चित है, तथापि परस्पर एक दूसरे को उद्- २० धत करने वाले ग्रन्थकारों में न्यूनानिन्यून २५ वर्ष का अन्तर मान कर इन का काल इस प्रकार स्वीकार किया जा सकता है
प्रन्थकर्ता ग्रन्थनाम काल सर्वानन्द टीकासर्वस्व १२१५ वि० सं० ........." धातुप्रदीपटीका ११६० ।
१. भविष्यत् पुराण के आधार पर डा० याकोबी ने हरदत्त का देहावसान् ८७८ ई. लगभग माना है। जर्नल रायल एशियाटिक सोसायटी बम्बई, • भाग १३, पृष्ठ ३१ । ।
२. इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टली, सेप्टेम्बर १९४३, पृष्ठ २०७ में उद्धृत । इस भाष्यव्याख्या प्रपञ्च के विषय में हम मागे लिखेंगे। ..
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