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________________ १० २ संस्कृत भाषा की प्रवृत्ति, बिकास और ह्रास का प्रथम प्रवक्ता आदि विद्वान् ब्रह्मा था।' यद्यपि उत्तरकाल में ब्रह्मा पद चतुर्वेदविद् व्यक्ति के लिये भी प्रयुक्त होता रहा, तथापि आदिम ब्रह्मा निस्सन्देह एक विशेष ऐतिह्य-सिद्ध व्यक्ति था । संस्कृत-वाङमय के अवलोकन से विदित होता है कि आयुर्वेद, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र आदि प्रत्येक विषय के आदिम ग्रन्थ ५ अत्यन्त विस्तृत थे। अतः संस्कृत-वाङमय के समस्त विभागों में प्रयुक्त होने वाले परिभाषिक तथा सर्वव्यवहारोपयोगी साधारण शब्दों का स्वरूप उस समय निर्धारित हो चुका था। उत्तरोत्तर यथाक्रम मनुष्यों की शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों के हास के कारण प्राचीन, अतिविस्तृत ग्रन्थ शनैः-शनैः संक्षिप्त होने लगे। वर्तमान में १. आयुर्वेद–'प्रजापतिरश्विभ्याम्, प्रजापतये ब्रह्मा' । चरक सूत्रस्थान १।४।। व्याकरण-'ब्रह्मा बृहस्पतये प्रोवाच' । ऋक्तन्त्र, प्रथम प्रपाठक के अन्त में ॥ ज्योतिष—'तस्माज्जगद्धितायेदं ब्रह्मणा रचितं पुरा' । नारद संहिता ११७॥ उपनिषद्-'तद्वैतद् ब्रह्मा प्रजापतय उवाच' । छान्दोग्य ८॥१५॥ 'कावषेयः प्रजापतेः, प्रजापतिर्ब्रह्मणः' । बृह० ६।५।४ ॥ शिल्प-काश्यप संहिता के १५ आरम्भ में, आनन्दाश्रम संस्करण । दण्डनीति राजनीति–महाभारत शान्तिपर्व ५६१७४-८० ॥ धनुर्वेद—'ब्राह्मणास्त्रेण संयोज्य' । रामायण युद्धकाण्ड २२।५ ॥ धर्मशास्त्र—महाभारत शान्तिपर्व १०६।१२ । इत्यादि । जिन्हें इस विषय की विशेष जिज्ञासा हो, वे पं० भगवद्दत्त विरचित भारतवर्ष का बृहद् इतिहास भाग २, पृष्ठ १-२६ (प्र० संस्करण, सं० २०१७) देखें। २. आयुर्वेद-श्लोकशतसहस्रमध्यायसहस्रं च कृतवान् "ततोऽल्पायुष्ट्वमल्पमेधस्त्वञ्चावलोक्य नराणां भूयोऽष्टधा प्रणीतवान्' । सुश्रुत सूत्रस्थान १॥३॥ अर्थशास्त्र—एवं लोकानुरोधेन शास्त्रमेतन्महर्षिभिः । संक्षिप्तमायुर्विज्ञाय मानां ह्रासमेव च' । इत्यादि, महाभारत शान्ति० ५९८१-८६ ॥ कौटिल्य अर्थशास्त्र ११ । नीतिशास्त्र-शतलक्षश्लोकमितं नीतिशास्त्रमथो- २५ क्तवान् । अल्पायुभूभृदाद्यर्थं संक्षिप्तमतिविस्तृतम्' । शुक्रनीति ११२,४ ॥ व्याकरण-'यान्युज्जहार माहेन्द्राद् व्य सो व्याकरणार्णवात् । पदरत्नानि कि तानि सन्ति पाणिनिगोष्पदे' । देवबोध, महाभारतटीकारम्भ । कामशास्त्रवात्स्यायन कामसूत्र अ० १ के प्रारम्भ में ॥ मीमांसाभाष्य-प्रपञ्चहृदय, ट्रिवेण्ड्रम संस्करण, पृष्ठ ३६ ॥ मामांसाशास्त्र का संक्षिप्त इतिहास हमारी ३० 'मीमांसा-शाबरभाष्य' की 'पार्षमत-विमशिनी' हिन्दी व्याख्या के प्रथम भाग में देखें।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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