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________________ ४२० महाभाष्य के टीकाकार इस बृहद् हैमवृत्त्यवचूणि ग्रन्थ का लेखनकाल सं० १२६४ वि० श्रा० शु० ३ रविवार है।' देश-कैयट ने अपने जन्म से किस देश को गौरवान्वित किया यह अज्ञात है, परन्तु कयट मम्मट रुद्रट उद्भट आदि नामों के सादृश्य से प्रतीत होता है कि कैयट कश्मीर देश का निवासी था। काशी के पुरानी पीढ़ी के वैयाकरणों में प्रसिद्धि रही है कि एक बार कैयट काशी की पण्डित-सभा में उपस्थित हुअा था। पायजामा पहरे होने के कारण उसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया, परन्तु शास्त्रीयतत्त्वविशेष पर, जो सभा में प्रस्तूयमान था, कयट ने समाधान प्रस्तुत किया, तो पण्डित-मण्डली चकित रह गई इस अनुश्रुति से भी कैयट का कश्मीरदेशज होना प्रकट होता है। ' महाभाष्य १।२।६४ के 'वृक्षस्थोऽवतानो वृक्षे छिन्नेऽपि न नश्यति के व्याख्यान में कैयट लिखता है--'यथा वृक्षोपरि द्राक्षादिलता".."। इस दृष्टान्त से भी कैयट का कश्मीरदेशज होना पुष्ट होता है। पुरा१५ काल में द्राक्षालता भारत में कश्मीर प्रदेश में ही प्रधानरूप से होती थी। काल कैयट ने अपने विषय में कुछ भी संकेत नहीं किया । अतः उसका इतिवृत्त तथा काल अज्ञात है। हम उसके काल-निर्णायक बाह्यसा. २० क्ष्यरूप कुछ प्रमाण उपस्थित करते हैं १-सर्वानन्द ने अमरकोष की टीकासर्वस्व नाम्नी व्याख्या संवत् १२१६ में लिखी है । उसमें वह मैत्रेयरक्षित-विरचित धातुप्रदीप' और किसी टीका' को उद्धृत करता है। २--मैत्रेयरक्षित तन्त्रप्रदीप १२१ नामनिर्देशपूर्वक कैयट को २५ १. हैमबृहद्वृत्त्यवचूणि पृष्ठ २०७, वि० सं० २००४ में सूरत से प्रकाशित । २. यह किंवदन्ती हमने काशी के वैयाकरण-मूर्धन्य श्री पं० देव नारायण जी त्रिवेदी (तिवारी) से अध्ययनकाल (सन् १९२७) में सुनी थी। ३. भाग १, पृष्ठ ५५, १५३, १५७ इत्यादि। ४. भाग ४, पृष्ठ ३० । दुर्घटवृत्ति (सं० १२२६ वि०) में भी धातुप्रदीय' ___३. टीका पृष्ठ १०३ पर उद्धृत है।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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