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________________ महाभाष्य के टीकाकार ४१६ भीमसेन का लेख अशुद्ध होने से प्रमाण योग्य नहीं है। भीमसेन का काल सं० १७७६ है । प्रतीत होता है कि उसे कैयट, उध्दट और मम्मट नामों के सादृश्य के कारण भ्रम हुआ। __ अानन्दवर्धनाचार्यकृत 'देवीशतक' की एक कैयटकृत व्याख्या उपलब्ध होती है। व्याख्या का लेखन काल कलि संवत् ४०७८ अर्थात् ५ विक्रम सं० १०३४ है । देवीशतक की व्याख्या में कैयट के पिता का नाम 'चन्द्रादित्य' मिलता है । अतः यह कैयट भी प्रदीपकार कैयट से भिन्न है। ___ गुरु–वेल्वाल्कर ने कैयट के गुरु का नाम 'महेश्वर' लिखा है।' इसमें प्रमाण अन्वेषणीय है। : शिष्य-कैपट ने निस्सन्देह अनेक छात्रों के लिए महाभाष्य का प्रवचन किया होगा। परन्तु हमें उनमें से केवल एक शिष्य का नाम ज्ञात हुआ है, वह है-'उद्योतकर' । यह उद्योतकर न्यायवार्तिक के रचयिता नैयायिक उद्योतकर से भिन्न व्यक्ति है । कैयट-शिष्य उद्योतकर ने भी व्याकरण पर कोई ग्रन्थ रचा था। उसके कुछ उद्धरण पं० १५ चन्द्रसागरसूरि ने हैमबृहद्वत्ति की आनन्दबोधिनी टीका में उद्धृत किये हैं। उनमें से एक इस प्रकार है. ...."स्वगुरुमतमुपदर्शयन्नुद्योतकर आह-यथात्र भवानस्पदुपाध्यायोव्याकरणरत्नकार-पूर्णचन्द्रमाः कैयटाख्यः शिष्यसाथमिदमवोचत्-भृत्यापेक्षायात्र षष्ठी कृता, साध्यापेक्षया .....' ... श्री विजयानन्दसूरि के शिष्य अमरचन्द्र विरचित हैंमबृहद्वत्त्यवचूर्णि में भी पृष्ठ १४३ पर उद्योतकर का निम्न पाठ उद्धत है- उद्योतकरस्त्ववाह-सितोतेरेव ग्रहणं न्याय्यं सयेत्यनेन साहच र्यात् । किं च स्यतिग्रहणे नियमार्थता जायते, सिनोतिग्रहगे तु विध्य.. थता। विधिनियमसंभवे च विधिरेव ज्यायान् । न च वाच्यमेकनव २५ सितग्रहणेन स्यतिसिनोत्युभयोपादानाद्विध्यर्थता नियमार्थताऽपि स्यात्' . इति। १. द्र०--सिस्टम्स् आफ संस्कृत ग्रामर, पैराग्राफ २८ । २. हैमबृहद्वत्ति भाग १, पृष्ठ १८८, २१० । ३. हैमबृहद्वृत्ति भाग १, पृष्ठ २१० ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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