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________________ ४१८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतितास २. अज्ञातकर्तृक (सं० ६८० वि० से पूर्व) स्कन्दस्वामी ऋग्वेद का एक प्रसिद्ध भाष्यकार है। उसने निरुक्त पर भी टीका लिखी है। वह निरुक्त ११२ को टीका में लिखता है - अन्ये वर्णयन्ति-भावशब्दः शब्दपर्यायः । तथा च प्रयोगः-'यद्वा ५ सर्वे भावाः स्वेन भावेन भवन्ति स तेषां भावः' इति, 'सर्वे शब्दाः स्वेना थेनार्थभूताः संबद्धा भवन्ति स तेषां स्वभावः' इति तत्र व्याख्यायते । यहां स्कन्दस्वामी ने पहिले 'यद्वा "भावः' पाठ उद्धृत किया हैं । यह पाठ महाभाष्य ५। १ । ११६ का हैं । तदनन्तर 'सर्वे "स्वभावः' पाठ लिखकर अन्त में 'तत्र व्याख्यायते' लिखा है। इससे स्पष्ट है कि १० स्कन्दस्वामी ने उत्तर पाठ महाभाष्य की किसी प्राचीन टीका ग्रन्थ से उद्धृत किया है। स्कन्दस्वामी हरिस्वामी का गुरु है । हरिस्वामी ने शतपथ ब्राह्मण प्रथम काण्ड का भाष्य संवत् ६९५ वि० में लिखा हैं। यदि हरिस्वामी की तिथि कलि सं. ३०४७ हो, जैसा कि पूर्व पृष्ठ ३८८-३८९ १५ पर लिखा है, तो स्कन्दस्वामी की निरुक्त टीका में उद्धृत महाभाष्यव्याख्या विक्रम संवत् प्रवर्तन से भी पूर्ववर्ती होगी। ३. कैयट (सं० ११०० वि० से पूर्व) कैयट ने महाभाष्य की 'प्रदीप' नाम्नी एक महत्त्वपूर्ण व्याख्या लिखी है । महाभाष्य पर उपलब्ध टीकात्रों में भर्तृहरि की महाभाष्य२० दीपिका के अनन्तर यहीं सब से प्राचीन टीका है। परिचय वंश-कैयटविरचित महाभाष्यप्रदीप के प्रत्येक अध्याय के अन्त में जो वाक्य उपलब्ध होता है, उसके अनुसार कैयट के पिता का नाम 'जैयट उपाध्याय' था। २५ मम्मटकृत काव्यप्रकाश की 'सुधासागर' नाम्नी टीका में भीमसेन ने कैयट और उव्वट को मम्मट का अनुज लिखा है । यजुर्वेदभाष्य के अन्त में उव्वट ने अपने पिता का नाम 'वज्रट' लिखा है। अतः १. देखो--पूर्व पृष्ठ ३८८ । २. इत्युपाध्यायजयटपुत्रकैयटकृते महाभाष्यप्रदीपे......॥ ३. आनन्दपुरवास्तव्यवज्रटस्य च सूनुना । उवटेन कृतं भाष्यं ....॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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