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________________ महाभाष्य के टीकाकार ४११ किया है। उसमें अनेक महत्त्वपूर्ण वचन हैं। हम उनमें से कुछ एक अत्यन्त आवश्यक वचनों को नीचे उद्धृत करते हैं १-यथा तैत्तिरीयाः कृतणत्वमग्निशब्दमुच्चारयन्ति ।' हस्तलेख पृष्ठ १; पूना सं० पृष्ठ १ । २-एवं ह्य क्तम्-स्फोट: शब्दो ध्वनिस्तस्य व्यायामादुपजायते । ५ हस्तलेख पृष्ठ ५; पूना सं० ४ । ३-अस्ति हि स्मृतिः-एकः शब्दः सम्यग्ज्ञातः......४ । १६।१२। ४-इळे अग्निनाग्निनेति विवृतिर्दृष्टा बह वृच्सूत्रभाष्ये । १७। २३ । ५. प्राश्वलायनसूत्रे-ये यजामहे .....।१७।१३। ६. आपस्तम्बसूत्रे-अग्नाग्ने......।१७।१३। ७. शब्दपारायणं रूढिशब्दोऽयं कस्यचिद् ग्रन्थस्य । २१।१७। ८. संग्रह एतत् प्राधान्येन परीक्षितम्-नित्यो वा स्यात् कार्यो वेति । चतुर्दश सहस्राणि वस्तूनि अस्मिन् संग्रहग्रन्थे [परीक्षितानि] ।२६।२१। - ६. सिद्धा द्यौः, सिद्धा पृथिवी, सिद्धमाकाशमिति । पाहतानां मीमांसकानां च नैवास्ति विनाश एषाम् ।२६।२२। १०. एवं संग्रह एतत् प्रस्तुतम्-कि कार्यः शब्दोऽथ नित्य इति १३०॥२३॥ ११. इहापि तदेव, कुतः ? संग्रहोऽप्यस्यैव शास्त्रस्यैकदेशः, तत्रक- २० तन्त्रत्वाद् व्याडेश्च प्रामाण्यादिहापि तथैव सिद्धशब्द उपात्तः ।३०१२३ १. तुलना करो-यद्यपि च अग्निर्वृत्राणि जङ्घनदिति वेदे कृतणत्वमग्निशब्दं पठन्ति । न्यायमञ्जरी पृष्ठ २८८। यहां उद्धृत पाठ प्राय: हस्तलेखानुसारी हैं। पूना संस्करण का पाठ साथ में दी गई पूना सं० की पृष्ठ संख्या पर देखें। २. यह वचन भर्तृहरि ने वाक्यपदीय ब्रह्मकाण्ड की स्वोपज्ञटीका में भी उद्धत किया है । देखो—पृष्ठ ३५ (लाहौर सं०)। ३. पागे उद्धरण के अन्त में दी गई प्रथम संख्या हस्तलेख के पृष्ठ की है और दूसरी पूना संस्करण की। ४. महाभाष्य ६।१८४॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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