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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
थे । कार्यावरोध का कारण प्राचार्यवर का स्वामी दयानन्द सरस्वती कृत यजुर्वेद-भाष्य के सम्पादन और उस पर विवरण लिखने में प्रवत्त हो जाना था। इस कारण वे दीपिका का प्रकाशन पूरा न कर सके ।
यदि वह संस्करण पूर्ण प्रकाशित हो जाता, तो अगले संस्करणों की ५ आवश्यकता ही न रहती। आचार्यवर द्वारा किया गया सम्पादन अगले सम्पादनों की अपेक्षा अधिक उत्तम है।
इसके पश्चात् महाभाष्य-दीपिका का दो स्थानों से प्रकाशन हुआ है । एक के सम्पादक हैं-श्री पं० काशीनाथ अभ्यङ्कर । यह भण्डारकर
ओरियण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट पूना से प्रकाशित हुआ है। दूसरे के १. सम्पादक हैं-श्री वी० स्वामिनाथन् । यह हिन्दू विश्वविद्यालय काशी
से प्रकाशित हुआ है। प्रथम संस्करण में उपलब्धांश पूरा छपा है, जब कि दूसरे में ४ आह्निक तक ही छपा है ।
पुनः सम्पादन की आवश्यकता-हमने ये दोनों संस्करण देखे हैं । उसके आधार पर हम निस्संशय कह सकते हैं कि इन संस्करणों के १३ प्रकाशित हो जाने पर भी इसके एक संस्करण की और आवश्यकता
है। यद्यपि इन संस्करणों के सम्पादकों ने पर्याप्त परिश्रम किया है, पुनरपि इन दोनों के वैयाकरण न होने से अनेक स्थल संशोधनाह रह गये हैं।
भर्तृहरि के अन्य ग्रन्थ २०. आद्य भर्तृहरि के 'महाभाष्यदीपिका' के अतिरिक्त निम्न ग्रन्थ
और हैं- . . . . . . . . १-वाक्यपदीय (प्रथम द्वितीय काण्ड)। २-प्रकीर्णकाण्ड (तृतीय काण्ड)।: :..: . : ३-वाक्यपदीय (काण्ड १, २) की स्वोपज्ञटीका।। ४-वेदान्तसूत्र-वृत्ति। :'. '..:.. : . ५-मीमांसासूत्र-वत्ति।
. इन में संख्या १, २, ३, पर विचार 'व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार' नामक २६ वें अध्याय में किया जायेगा। संख्या ४, ५ का
संक्षिप्त वर्णन हम पूर्व कर चुके हैं। . : ::. . ३० . महाभाष्यदीपिका के विशेष उद्धरण - हमने भर्तृहरिविरचित 'महाभाष्यदीपिका' का अनेकधा पारायण