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महाभाष्य के टीकाकार
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प्राचीन लिपिकार मंगलार्थ लिखते थे । अतः 'राम' शब्द को देखकर लिपिकार के 'राम' नाम की कल्पना करना चिन्त्य है । उससे भी हास्यास्पद बात है - अन्य हस्तलेखों पर लिखे 'राम' नाम के आधार पर उन्हें दीपिका के लेखक का लिखा स्वीकार करना । यदि वर्मा जी ने दीपिका की फोटो का भी दर्शन कर लिया होता, तो वे यह ५ भूल न करते । फोटो कापी से स्पष्ट विदित होता है कि इसकी मूल प्रति कई लेखकों के हाथ की लिखी हुई है ।
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७. उद्धरण सं०८ में लिखी कल्पना 'खण्डित प्रति पृष्ठ संख्या २००० (दो हजार ) ' शब्दों पर आधृत है । जब यह पाठ ही मूल कोश में नहीं है, तब वर्मा जो की कल्पना स्वयं ढह जाती है ।
इस विवेचना से स्पष्ट है कि दीपिका के ग्रन्थपरिमाण, और उसमें दो प्रकरण त्रुटित होने के विषय में वर्मा जी ने जो कुछ लिखा है, वह सब भ्रान्तिमूलक है । ग्रन्थ का साक्षात् दर्शन किये विना किसी विषय पर लिखना प्रायः अशुद्ध एवं भ्रान्तिजनक होता है ।
महाभाष्यदीपिका के उद्धरण - इसके उद्धरण कैयट, वर्धमान १५ शेषनारायण, शिवरामेन्द्र सरस्वती, नागेश और वैद्यनाथ पायगुण्डे आदि के ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं । अन्तिम चार ग्रन्थकार विक्रम की १८ वीं शताब्दी के हैं । अतः प्रयत्न करने पर इस टीका के अन्य हस्तलेख मिलने की पूरी सम्भावना है ।
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महाभाष्यदीपिका की प्रतिलिपि -- पञ्जाब यूनिवर्सिटी के पुस्तकालय में वर्तमान दीपिका का फोटो पाकिस्तान में रह गया है । बड़े सौभाग्य की बात है कि हमारे प्राचार्य महावैयाकरण श्री पं० ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु ने सं० १९८७ में पञ्जाब यूनिवर्सिटी के पुस्तका - लय से महान् परिश्रम से दीपिका का हस्तलेख प्राप्त करके अपने उपयोग के लिए उसकी एक प्रतिलिपि करली थी । वह इस समय २५ रामलाल कपूर ट्रस्ट के पुस्तक संग्रह में सुरक्षित है ।
महाभाष्यदीपिका का सम्पादन
सं० १९९१ में हमारे आचार्य श्री पं० ब्रह्मदत्त जी जिज्ञासु ने महाभाष्य दीपिका का सम्पादन प्रारम्भ किया था । परन्तु उसके केवल चार फार्म ( ३२ पृष्ठ) ही काशी को 'सुप्रभातम्' पत्रिका में प्रकाशित हुए ३०