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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
खण्डित है । हस्तलेखका अन्त ङिच्च १|१| ५३ सूत्र पर होता है । इसमें २१७ पत्रे अर्थात् ४३४ पृष्ठ हैं । प्रतिपृष्ठ १२ पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति लगभग ३५ अक्षर हैं । इस प्रकार संपूर्ण हस्तलेख का परिमाण लगभग ५७०० श्लोक है ।
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यह हस्तलेख अनेक व्यक्तियों के हाथ का लिखा हुआ है । कहींकहीं पर पृष्ठमात्राएं भी प्रयुक्त हुई हैं । अतः यह हस्तलेख न्यूनाति - न्यून ३०० वर्ष प्राचोन अवश्य है । इस हस्तलेख का पाठ अत्यन्त विकृत है | प्रतीत होता है, इसके लेखक सर्वथा अपठित थे ।
sto सत्यकाम वर्मा का मत - श्री वर्मा जी ने 'संस्कृत व्याकरण १० का उद्भव और विकास' ग्रन्थ में पृष्ठ २१२, २१३ तथा २२७, २२८ पृष्ठों पर महाभाष्यदीपिका के परिमाण के विषय में कई अन्यथा बातें लिखी हैं यथा
१. वर्तमान उपलब्ध प्रति का लेखक एक पृष्ठ के हाशिये पर अपने ही लेख में लिखता है - 'खण्डित प्रति' पृष्ठ संख्या २००० (दो १५ सहस्र ) । सम्पूर्ण पृष्ठ २१३, २२७ ।
२. दूसरे स्थान पर उसने ही टिप्पणी दो है - ' इसमें दो प्रकरण त्रुटित हैं ।' पृष्ठ २२७ ॥
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३. जो अंश उपलब्ध हैं, उसमें से भो एक स्थल पर एक साथ चार सूत्रों का प्रकरण ही गायब है । पृष्ठ २१२ ।
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४. उसी प्रसङ्ग में सूत्र का एक अंश, बीच में अन्यसूत्र की व्याख्या हो जाने के बाद अचानक हो आरम्भ होकर समाप्त हो जाता है |...... पृष्ठ संख्या निर्वाध देता गया है । पृष्ठ २१२ ।
५. एक अन्य स्थान पर हमने लिखा पाया है - 'महाभाष्य टीका ग्रन्थ ६ हजार साठि । २२७, २२८ ॥
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६. 'ग्रन्थ' शब्द का क्या अर्थ है, यह हम मोमांसका जी जैसे विचारक विद्वान् के विचार के लिये ही छोड़ते हैं । पृष्ठ २२८ ।
७. जिस प्रतिलिपिकार 'राम' के हाथ की यह प्रतिलिपि है, उसी के हाथ की अन्य अनेक प्रतिलिपियां प्रातिशाख्य आदि की भी देखने में आई हैं । पृष्ठ २२८ ।
८. अन्यत्र उल्लेख है - 'खण्डितप्रति पृष्ठ संख्या २०००, (दो