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महाभाष्य के टीकाकार
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८. पुरुषोत्तमदेव ज्ञापक- समुच्चय में लिखता है - 'प्राहिण्वन् इति णत्वार्थं भर्तृहरिणा व्याख्यातमिति भागवृत्तिः । '
8- संक्षिप्तसार टीका का कर्त्ता भी लिखता है - प्राहिण्वन् भर्तृहरिसम्मतमिदमुदाहरणम्, भागवृत्तिकृताप्युदाहृतम्'
भर्तृहरि के ये उद्धरण महाभाष्य ८ । ४ । ११ को टीका से ही लिये जा सकते हैं । अन्यत्र महाभाष्य में इसका कोई प्रसङ्ग नहीं है ।
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इन उद्धरणों से इतना निश्चित है कि भर्तृहरि का कोई ग्रन्थ सम्पूर्ण अष्टाध्यायी पर अवश्य था । भर्तृहरि ने अष्टाध्यायी पर वृत्ति लिखी हो, ऐसा कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता । अतः यही मानना उचित प्रतीत होता है कि उसने सम्पूर्ण महाभाष्य पर १० व्याख्या लिखी थी । प्रतीत होता है, इत्सिंग के काल में 'महाभाष्यदीपिका' का जितना अंश उपलब्ध था, उसने उतने ग्रन्थ का ही परिमाण लिख दिया । वर्धमान के काल में दीपिका के केवल तीन पाद ही शेष रह गये होंगे । सम्प्रति उसका एक पाद भी पूर्ण उपलब्ध.: नहीं होता । कृष्ण लीलाशुक मुनि और सीरदेव ने तीसरे और १५ आठवें अध्याय के जो उद्धरण दिये हैं, वे सुधाकर के ग्रन्थ तथा भाग - वृत्ति से उदधृत किये हैं, यह उन उद्धरणों से स्पष्ट है । पुरुषोत्तमदेव और संक्षिप्तसार- टीका के उद्धरण भी भागवृत्ति से उद्धृत प्रतीत होते हैं । सम्भव है तन्त्रप्रदीपस्थ उद्धरण भी ग्रन्थान्तर से उद्धृत किया गया हो ।
महाभाष्यदीपिका का वर्तमान हस्तलेख
भर्तृहरि - विरचित महाभाष्य - दीपिका का जो हस्तलेख इस समय उपलब्ध है, वह जर्मनी की राजधानी बर्लिन के पुस्तकालय में था । इसकी सर्वप्रथम सूचना देने का सौभाग्य डा० कीलहान को है। इस हस्तलेख के फोटो लाहौर और मद्रास आदि के पुस्तकालयों में २५ विद्यमान हैं । - दीपिका का दूसरा हस्तलेख अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ ।
उपलब्ध - हस्तलेख का परिमाण - इस हस्तलेख का प्रथम पत्र
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१. पुरुषोत्तमदेवीय परिभाषावृत्ति के साथ मुद्रित ( राजशाही सं० ), पृष्ठ ६९ २. सन्धि, सूत्र ३२८ ॥
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