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________________ ३ - व्याकरण के 'दैवम्' ग्रन्थ का व्याख्याता कृष्ण लीलाशुक मुनि अपनी 'पुरुषकार' नाम्नी व्याख्या में लिखता है - 'प्राह चैतत् सर्वं ५ सुधाकरः प्रनेन वर्तमाने क्तेन भूते प्राप्तः क्तो बाध्यते इति भर्तृहरिः । भाष्यटीकाकृतस्तु भूतेऽपि क्तो भवतीत्यूचुः । तथा च पूजितो गतः पूजितो यातीति भूतकालवाच्यः, न तु पूज्यमानो वर्तमानः' ।' ४०४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास वृत्ति के सम्पादक ने इस उद्धरण को भागवृत्तिकार का माना है, परन्तु यह ठीक नहीं ।' भर्तृहरि का कथन अष्टा० ५।१।११६ की महाभाष्य की व्याख्या १५ में हो सकता है । २५ भर्तृहरि का यह लेख महाभाष्य ३।२।१८८ की व्याख्या में ही हो सकता है । ४ - हरिभास्कर ने परिभाषा - भास्कर के अन्त में भर्तृहरि का एक वचन उद्धृत किया है - श्रत्रोत्पत्तिमत्स्वपिपदार्थेषु सच्छन्दः संबन्धं न व्यभिचरतीति तत उत्पन्नो भावप्रत्ययः क्रिया सम्बन्धं नाह, अपि तु सामान्यम् । इदं च भर्तृ हरेर्वचनमित्युक्तम् ॥ ३० ६ - मैत्रेय रक्षित तन्त्रप्रदीप ८ । । २१ में लिखता है - 'भतृ २० हरिणा चास्य नित्यार्थतैवोक्ता । तथा च भागवृत्तिकृता प्रत्युदाहरणमुपन्यस्तम्-तन्त्रे उतम् तन्त्रयुत्रम् इति' ।" ५ - शरणदेव दुर्घटवृत्ति ७।३।३४ में लिखता है - 'यथालक्षणमप्रयुक्ते इति उपराम उद्याम इत्येव भवतीति भर्तृहरिणा भागवृत्तिकृता चोक्तम्' ।" ७ – सीरदेव अपनी परिभाषावृत्ति में लिखता है - 'भर्तृहरिणा तूक्तम् यः प्रातिपदिकान्तो नकारो न भवति तदर्थं नुम्ग्रहणं प्राहिवदिति । " १. द्र० पृष्ठ ४०१ टि० २ । २. हमारा संस्करण, पृष्ठ ६७ । ३. परिभाषासंग्रह, पूना संस्क० (सन् १९६७), पृष्ठ ३७४ ॥ ४. पृष्ठ ११७, संस्करण २, पृष्ठ १२८ । ५. न्यास की भूमिका पृष्ठ १४ में उद्धृत । ६. पृष्ठ १२ परिभाषा - संग्रह, पृष्ठ १६७ | 4
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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