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________________ महाभाष्यकार पतञ्जलि वर्तमान में उपलब्ध महाभाष्यदीपिका का जितना परिमाण है, उसे देखते हुए २५००० श्लोक परिमाण तीन पाद से अधिक ग्रन्थ का नहीं हो सकता । डा० कीलहान का भी यही मत है। द्वितीय तृतीय पाद की दीपिका के उद्धरण-पुरुषोत्तमदेव ने अपनी परिभाषावृत्ति में महाभाष्य १।२।४५ की दीपिका का पाठ इस ५ प्रकार उद्धृत किया हैं अर्थवत्सूत्रे (१।२।४५) च 'अस्ति हि सुबन्तानामसुबन्तेन समासः गतिकारकोपपदानां कृद्धिः' इति भर्तृहरिणोक्तम् ।' पुनः १।३।२१ की भाषावृत्ति में पुरुषोत्तमदेव लिखता है-गतविधिप्रकारास्तुल्यार्या इति भर्तृहरिः'। १० भाषावृत्ति के सम्पादक ने इस पाठ को भागवृत्तिकार का कहा हैं, वह चिन्त्य है । ___ महाभाष्यप्रदीप ११३।२१ की उद्योत टीका में नागेश लिखता हैं-'प्रतएव हरिणतदुदाहरणे शपिद्विकर्मक इति व्याख्यातम्' । संम्पूर्ण महाभाष्य को टोका-व्याकरण के ग्रन्थों में अनेक ऐसे १५ उद्धरण उपलब्ध होते हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि भर्तृहरि ने महाभाष्य के प्रारम्भिक तीन पादों पर ही व्याख्या नहीं लिखो, अपितु सम्पूर्ण महाभाष्य पर टीका लिखी थी। इस के लिए हम तीन पाद से प्रागे के प्रमाण उपस्थित करते हैं । यथा १–भर्तृहरि वाक्यपदीय ब्रह्मकाण्ड की स्वोपजटीका में २० लिखता है , 'संहितासूत्रभाष्यविवरणे बहुधा विचारितम्' ।' संहिता-सूत्र अर्थात् 'परः सन्निकर्षः संहिता' प्रथमाध्याय के चतुर्थ पाद का १०६ वां सूत्र है। २-पुरुषोत्तमदेव ने भाषावृत्ति ३।१।१६ पर भर्तृहरि का एक २५ उद्धरण दिया है। वह इसी सूत्र की टीका का हो सकता है । भाषा १. राजशाही संस्करण, पृष्ठ २४ । २. इसके विषय में पृष्ठ ४०१ की टि० २ देखिये । ३. भाग १, पृष्ठ ८२, लाहौर संस्करण । ४. धूमाच्चेति भर्तृहरिः।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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