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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
ग्रन्थसंपादकों को इस विभाग का परिज्ञान अवश्य होना चाहिये, अन्यथा भयङ्कर भूलें होने की सम्भावना है ।
भर्तृहरि के विषय में इतना लिखने के अनन्तर प्रकृत विषय का निरूपण किया जाता है।
महाभाष्यदीपिका का परिचय आचार्य भर्तृहरि ने महाभाष्य की एक विस्तृत और प्रौढ़ व्याख्या लिखी है । इसका नाम 'महाभाष्यदीपिका' है।' इस व्याख्या के उद्धरण व्याकरण के अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। वर्तमान में
महाभाष्यदीपिका का सर्वप्रथम परिचय देने का श्रेय डा० कीलहान १० को है। .
__महाभाष्यदीपिका का परिमाण-इत्सिग ने अपनी भारतयात्राविवरण में दीपिका का परिमाण २५००० श्लोक लिखा है। परन्तु इस लेख से यह विदित नहीं होता कि भर्तृहरि ने सम्पूर्ण महाभाष्य
पर टीका लिखी थी, अथवा कुछ भाग पर । विक्रम की १२ वीं १५ शताब्दी का ग्रन्थकार वर्धमान लिखता है
- भर्तृहरिक्यिपदीयप्रकीर्णयोः कर्ता महाभाष्यत्रिपाद्या व्याख्याता
इसी प्रकार प्रकीर्णकाण्ड की व्याख्या की समाप्ति पर हेलाराज भी लिखता है
त्रैलोक्यगामिनी येन त्रिकाण्डी त्रिपदी कृता ।
तस्मै समस्तविद्याश्रीकान्ताय हरये नमः ॥ इस श्लोक में त्रिपदी पद त्रिकाण्डी वाक्यपदीय का विशेषण भी हो सकता है, अतः यह प्रमाण सन्दिग्ध है।
का लिखा है । देखो भाषावृत्ति पृष्ठ ३२, टि० ३० । परन्तु दुर्घटवृत्ति में यहां २५ भागवत्ति और भर्तृहरि के भिन्न-भिन्न पाठ उदधृत किये हैं यथा-गतता
च्छील्ये इति भागवृत्तिः, गतिविधप्रकारास्तुल्यार्था इति भर्तृहरिः । दुर्घटवृत्ति पृष्ठ १६ । इसी प्रकार भाषावृत्ति के सम्पादक ने ३३१३१६ में उद्धृत भर्तृहरि के पाठ को भागवृत्तिकार का लिखा है।
१. इति महामहोपाध्यायभर्तृहरिविरचितायां श्रीमहाभाष्यदीपिकायां ३० प्रथमाध्यास्य प्रथमपादे द्वितीयमाह्निकम् । हमारा हस्तलेख पृष्ठ ११७ ।