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५१ . महाभाष्य के टीकाकार प्रतीत होती है कि वि० सं०७०७ के लगभग कोई भर्तृहरि नामा विद्वान अवश्य विद्यमान था। इत्सिग स्वयं वलभी नहीं गया था। अतः सम्भव हो सकता हैं कि उसने वलभीनिवासी किसी भर्तृहरि की मृत्यु सुन कर उस का उल्लेख वाक्यपदीय आदि प्राचीन ग्रन्थों के रचयिता के प्रसंग में कर दिया हो । इत्सिग ने भर्तहरि को बौद्ध ५ लिखा है, वह भागवृत्तिकार विमलमति उपनाम भर्तृहरि के लिये उपयुक्त हो सकता है, क्योंकि विमलमति एक प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थकार
भर्तृहरि-त्रय के उद्धरणों का विभाग अनेक व्यक्यिों का भर्तृहरि नाम होने पर एक बड़ी कठिनाई यह १० उपस्थित होती है कि प्राचीन ग्रन्थों में भर्तृहरि के नाम से उपलभ्यमान उद्धरण किस भर्तृहरि के समझे जावें । हमने वाक्यपदीय, उसकी स्वोपज्ञटीका, महाभाष्यदीपिका, भट्टिकाव्य और भागवृत्ति के उपलभ्यमान सभी उद्धरणों पर महती सूक्ष्मता से विचार करके निम्न परिणाम निकाले हैं
१-प्राचीन ग्रन्थों में भर्तृहरि वा हरि के नाम से जितने उद्धरण उपलब्ध होते हैं, वे सब आद्य भर्तृहरि के हैं। . २-भट्टिकाव्य के सभी उद्धरण भट्टि के नाम से दिये गये हैं। केवल श्वेतवनवासी विरचित उणादिवृत्ति के हस्तलेख में भट्टिकाव्य के उद्धरण भर्तृ काव्य के नाम से दिये हैं। दूसरे हस्तलेख में उसके २० स्थान में भट्टिकाव्य ही पाठ है ।'
३-भागवृत्ति के उद्धरण भागवृत्ति, भागवृत्तिकृत अथवा भागवृत्तिकार नाम से दिये गये हैं । भागवृत्ति का कोई उद्धरण-भर्तृहरि के नाम से नहीं दिया गया। ।' यह बड़े सौभाग्य की बात है कि अर्वाचीन वैयाकरणों ने तोनों के २५ उद्धरण सर्वत्र पृथक्-पृथक् नामों से उद्धृत किये हैं, उन्होंने कहीं पर इन तीनों का सांकर्य नहीं किया। भाषावृत्ति के सम्पादक श्रीशचन्द्र चक्रवर्ती ने इस विभाग को न समझकर अनेक भूलें की हैं। भावी
१. देखो पृष्ठ ८३, पाठान्तर ४ ।
२. भाषावृत्ति के राजशाही (बंगला देश) संस्करण के सम्पादक ने 'गतविया कारास्तुल्यार्थ इति भर्तृहरि' इस उद्वरग को भागवृत्ति के रचयिता'
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