________________
४०० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'यां चिन्तयामि मयि सा विरक्ता" श्लोक की ओर हो सकता है ? यदि यह कल्पना ठीक हो, तो नीतिशतक आद्य भर्तृहरिकृत होगा, क्योंकि इसमें हरि का विशेषण 'अखिलाभिधानवित्' लिखा है । वर्ष
मान अन्यत्र भी आद्य भर्तृहरि के लिये 'वेदविदामलकारभूतः', ५ 'प्रमाणितशब्दशास्त्रः' आदि विशेषणों का प्रयोग करता है।
मीमांसा-सूत्रवृत्ति-यदि पण्डित रामकृष्ण कवि का पूर्वोक्त (पृष्ठ ३६२) लेख ठीक हो तो निश्चय हों यह वृत्ति प्राद्य भर्तृहरि ' विरचित होगी।
वेदान्त-सूत्रवृत्ति-यह वृत्ति अनुपलब्ध है। यामुनाचार्य ने एक १० सिद्धित्रय' नामक ग्रन्थ लिखा है । उस में वेदान्त सूत्र के व्याख्याता
टङ्क, भर्तृ प्रपञ्च, भर्तृ मित्र, ब्रह्मदत्त, शंकर, श्रीवत्सांक और भास्कर
के साथ भर्तृहरि का भी उल्लेख किया है। इस से भर्तृहरिकृत •, वेदान्तसूत्रवृत्ति की कछ सम्भावना प्रतीत होती है।
शब्दधातुसमीक्षा-यह ग्रन्थ हमारे देखने में नहीं आया। इस का १५ उल्लेख हमारे मित्र श्री पं० माधव-कृष्ण शर्मा ने अपने 'भत हरि
नाट ए बौद्धिस्ट' नामक लेख में किया है। यह लेख 'दि पूना ओरियण्टलिस्ट' पत्रिका अप्रेल सन् १९४० में छपा है। .. ... :: .. इत्सिग की भूल का कारण
भट्टिकाव्य और भागवृत्ति के रचयितात्रों के वास्तविक नाम २० चाहे कुछ रहे हों, परन्तु इतना स्पष्ट है कि ये ग्रन्थ भी भर्तृहरि के
नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। इस प्रकार संस्कृत साहित्य में न्यून से न्यून तीन भर्तृहरि अवश्य हुए हैं। इन का काल पृथक-पृथक है। इन की ऐति
हासिक शृङ खला जोड़ने से इत्सिग के वचन में इतनी सत्यता अवश्य ... १. श्लोक २ । पुरोहित गोपीनाथ एम० ए० संपादित, वेंकटेश्वर प्रेस २५ बम्बई, सन् १८६५ । कई संस्करणों में यह श्लोक नहीं है । ___. यस्त्वयं वेदविदामल कारभूतो वेदाङ्गत्वात् प्रमाणितशब्दाशास्त्र:
सर्वज्ञंमन्य उपमीयते । गणरत्नमहोदधि पृष्ठ १२३ । . . ३. तथापि प्राचार्यटङ्क-भर्तृप्रपञ्च-भर्तृ मित्र-भर्तृहरि-ब्रह्मदत्त-शंकर
श्रीवत्साङ्क-भास्करादिविरचितसितविविधनिबन्धश्रद्धाविप्रलब्धबुधयो न १ यथान्यथा च प्रतिपद्यन्ते इति तत्प्रीतये युक्तः प्रकरणप्रक्रमः।