SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाभाष्य के टीकाकार ३६६ २ - यथालक्षणमप्रयुक्ते इति उद्याम उपराम इत्येव भवतीति भर्तृहरिणा भागवृत्ति कृता चोक्तम् ।' ३—भर्तृहरिणा च नित्यार्थतैवास्योक्ता तथा च भागवृत्तिका रेण प्रत्युदाहरणमुपन्यस्तम्, तन्त्र उतम् - तन्त्रयुतम् । ४ - भर्तृहरिणा तुक्तम्- 'यः प्रातिपदिकान्तो नकारो न भवति ५ तदर्थं नुम्ग्रहणं प्राहिण्वनिति । अत्र हि हिवेलुङि नुमो णत्वमिति ।" 'तत्र पूर्वपदाधिकारः समासे च पूर्वोत्तरपदव्यवहारः, तत्कथं णत्वमिति न व्यक्तीकृतम् इति भागवृत्तिका रेणोक्तम् । ५ - प्राहिण्वन् इति णत्वार्थं भर्तृहरिणा व्याख्यातम् इति भागवृत्तिः । * ६ - प्राहिण्वन् । भर्तृहरिसम्मतमिदमुदाहरणम्, भागवृत्तिकृताऽप्युदाहृतम् । १० इन उद्धरणों में प्रथम और तृतीय उद्धरण में भर्तृहरि और भागवृत्तिकार का मतभेद दर्शाया है। चतुर्थ उद्धरण से व्यक्त होता है कि भागवृत्तिकार ने किसी भर्तृहरि का कहीं कहीं खण्डन भी किया था । १५. अतः इन उद्धरणों से भर्तृहरि और भागवृत्तिकार का पार्थक्य स्पष्ट 1 ६ शतक-त्रय - नीति, शृङ्गार और वैराग्य ये तीन शतक भर्तृहरि के नाम से प्रसिद्ध हैं । इनका रचयिता कौन सा भर्तृहरि है, यह अज्ञात है । जैन ग्रन्थकार वर्धमान सूरि गणरत्नमहोदधि में लिखता है २० वार्त्तव वर्तम् । यथा-— हरिराकुमारमखिलाभिधानवित् स्वजनस्य वार्तामन्वयुङ्क्त सः । क्या गणरत्नमहोदधि में उद्धृत पद्य का संकेत नीतिशतक के १. दुर्घटवृत्ति, पृष्ठ २१७ । २. तन्त्रप्रदीप ८ | ३ | ११ ॥ ३. सीरदेवीय परिभाषावृत्ति पृष्ठ १२ । परिभाषासंग्रह पृष्ठ १६७ ॥ ४. पुरुषोत्तमदेवकृत ज्ञापकसमुच्चय, पृष्ठ 8६ । २५ ५. संक्षिप्तसार टीका, सन्धि ३२८ । ६. विज्ञान शतक भी भर्तृहरि के नाम से छपा मिलता है, परन्तु उप का प्रामाण्य अभी साध्य है । ७. पृष्ठ १२० । ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy